SHAH JAHAN

SHAH JAHAN शाहजहाँ (1628-1658 ई.)

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शाहजहाँ (1628-1658 ई.)

शाहजहाँ का  जन्म5 जनवरी, 1592 ई. लाहौर किला
शाहजहाँ के पिता का नामजहांगीर
शाहजहाँ की माता का नामजगत गुसाईं (बिलकिस मकानी)
शाहजहाँ का बचपन का नामखुर्रम
शाहजहाँ का राज्यारोहण6 फरवरी, 1628 को आगरा में हुआ
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मेवाड़ विजय शहजादा खुर्रम की प्रथम महत्त्वपूर्ण सफलता थी।

शाहजहाँ का विवाह

शाहजहाँ का विवाह नूरजहाँ के भाई आसफ खां की पुत्री अर्जूमंद बानो बेगम से सन् 1612 में हुआ हुआ जो मुमताज महल के नाम से जानी जाती है।

तुज़ुक-ए-जहाँगीरी’ (जहांगीरनामा)

शाहजहाँ एवं मुमताज(अर्जुमंद) की शादी का जिक्र तुज़ुक-ए-जहाँगीरी’ (जहांगीरनामा) में भी मिलाता है

मुमताज महल(अर्जूमंद बानो बेगम)

इसकी 14 संतानों में से केवल 4 पुत्र और 3 पुत्रियाँ जीवित रहें, ये निम्न है

जहाँआरा, दाराशिकोह रोशनआरा, औरंगजेब, मुरादबक्श, गौहनआरा और शाहशुजा

शाहजहाँ का पालन-पोषण अकबर की स्त्री रुकैया बेगम की देखरेख में हुआ।

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आसफ खाँ

शाहजहाँ 1627 ई. में जहाँगीर की मृत्यु के समय दक्षिणी भारत में था।

शाहजहाँ ने आसफ़ ख़ाँ अपने ससुर को यह निर्देश/सन्देश भिजवाया   कि वह शाही/मुग़ल परिवार के उन समस्त लोगों को समाप्त कर दें, जोकि राज सिंहासन के दावेदार हैं।

दावरबख्श

शाहजहाँ का ससुर, इसने खुसरो के बेटे दावरबख्श को तख्त पर बैठाकर कूटनीतिक चाल चली। शाहजहाँ के आने तक ख़ुसरों के लड़के दाबर बख़्श को गद्दी पर बैठाया।

शाहजहाँ के वापस आने पर दाबर बख़्श का क़त्ल कर दिया गया। इस प्रकार दाबर बख़्श को बलि का बकरा कहा जाता है।

शाहजहाँ ने अबुल मुजफ्फर मुहम्मद साहिब-ए-किंरा सानी शहंशाह  बादशाह गाजी की उपाधि धारण की।

शाहजहाँ का शासनकाल भारत के मध्यकालीन इतिहास में वास्तुकला के विकास के दृष्टिकोण से स्वर्णयुग के रूप में जाना जाता है।

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कोहिनूर हीरा

फ़ारस का एक प्रसिद्ध व्यापारी जिसका नाम मीर जुमला था जो कि गोलकुण्डा का वज़ीर था वह मुग़लों की सेना में चला गया और मीर जुमला ने शाहजहाँ को कोहिनूर हीरा भेंट किया।

तख्त-ए-ताऊस (राजसिंहासन)

तख्त-ए-ताऊस शाहजहाँ के बैठने का राजसिंहासन था।

ताजमहल

मुमताज और शाहजहाँ के बीच बहुत गहरी मुहब्बत थी लोग इसकी चर्चा  करते थे की शौहर और बीवी में ऐसा प्यार किसी ने नहीं देखा था और  दोनों के 13 बच्चे हुए तीसरे नंबर की औलाद था दारा शिकोह और छठे नंबर पर औरंगजेब पैदा हुआ था

मुमताज महल की मृत्यु

सन 1631 के जून के महीने में शाहजहाँ अपनी सेना के साथ बुरहानपुर में थे और जहान लोदी पर चढ़ाई थी और मुमताज भी शाहजहाँ के साथ इस अभियान में थी और यहीं पर करीब 30 घंटे लंबे लेबर पेन के बाद अपने 14वें बच्चे को जन्म देते हुए मुमताज की मौत हो गई

सति-उन-निसा

मुमताज के डॉक्टर वज़ीर खान और उनके साथ रहने वाली दासी सति-उन-निसा ने बहुत कोशिश की परन्तु वो मुमताज को बचा नहीं पाए

मुमताज की मौत के ग़म में शाहजहाँ ने अपने पूरे मुगल साम्राज्य में दो साल तक मुमताज की मौत का ग़म मनाया गया था.

यमुना का किनारा

ऐसे कहा जाता है कि मुमताज जब आगरा में ठहरती तब वह यमुना किनारे के एक बाग में अक्सर घूमने जाया करती थीं, इसी कारण/ वजह से शायद से शाहजहाँ ने जब मुमताज की याद में एक अति उत्कृष्ट  कृति इमारत (ताजमहल) बनाने की सोची, तो यमुना का किनारा तय किया और पत्नी मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण करवाया

उस्ताद अहमद लाहौरी

उस्ताद अहमद लाहौरी को आमतौर पर इसका मुख्य वास्तुकार माना जाता है

ताजमहल एक विश्व धरोहर मकबरा

भारत के आगरा शहर में स्थित ताजमहल एक विश्व धरोहर मकबरा है। इसे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था ताजमहल मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी स्थापत्य शैली फारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के तत्वों का एक अनूठा संलयन है।

यूनेस्को की विश्व धरोहर

ताजमहल को 1983 में, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल बन गया। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर की सर्वश्रेष्ठ मानवीय कृतियों में से एक बताया गया,

चकला

शाहजहाँ ने इस नवीन प्रशासनिक इकाई का सृजन किया।

पीटर मुंडी

शाहजहाँ के काल में भारत आया। इसने शाहजहाँ के काल में पड़े भीषण अकाल (1630-32 ई.) का उल्लेख किया है।

विद्रोह

खानजहाँ लोदी (1628 ई.)

शाहजहाँ के विरुद्ध पहला विद्रोह अफगान खानेजहाँ लोदी ने किया।

वीड के युद्ध में पराजित होने के बाद खानजहाँ ने मुगलों के विरुद्ध सिहोंदा (जिला बांदा) नामक स्थान पर अंतिम युद्ध लड़ा जिसमें वह मारा गया।

नूरपुर

नूरपुर के जमींदार का शाहजहाँ ने दमन किया।

उत्तर पश्चिम सीमा नीति
कन्धार

जहाँगीर के काल में कंधार पर ईरानियों ने अधिकार कर लिया था। जहाँगीर को अफगानों के रोशनियाँ सम्प्रदाय के उपद्रवों का सामना करना पड़ा था।

सूबेदार सईदखां

शाहजहाँ के सामने सबसे बड़ी समस्या कंधार पर पुनः अधिकार करना था।

शाहजहाँ के आदेश पर काबुल के सूबेदार सईदखां  ने कंधार पर अधिकार कर लिया और ईरानी सेना को मार भगाया।

शाह अब्बास ने 1648 ई. में कंधार पर अधिकार कर लिया।

शाहजहाँ ने कंधार की रक्षा करने के लिए 1652 ई. में औरंगजेब व 1653 ई. में दारा शिकोह को भेजा।

ईरानियों के जोरदार तोपखाने के कारण मुगल किले में नहीं घुस पाये । कंधार अभियानों से मुगल साम्राज्य को काफी आर्थिक हानि उठानी पड़ी।

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बल्ख आक्रमण

बल्ख आक्रमण शहजादा मुराद ने 1646 ई. में बल्ख पर अधिकार कर लिया।

अब्दुल अजीज बल्ख का शासक, 1647 ई. में औरंगजेब बुखारा की ओर बढ़ा और अब्दुल अजीज की सेना के साथ उसका युद्ध हुआ, इस युद्ध के कारण मुगलों की प्रतिष्ठा धूमिल हुई,

ईरान ने 1649 ई. कंधार पर कब्जा कर लिया।

कंधार को फिर से जीतने के लिए शाहजहाँ ने निम्न सैन्य अभियान भेजे

1मुराद1646 ई.
2औरंगजेब1647 ई.
3औरंगजेब और शादुल्ला खां1649 ई.
4औरंगजेब और शादुल्ला खां1652 ई.
5दारा शिकोह1653 ई.
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मध्य एशिया नीति

नजर मुहम्मद

नजर मुहम्मद समरकंद का शासक, अमीरों ने इसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

अब्दुल अजीज

अब्दुल अजीज नजर मुहम्मद का पुत्र, इसने स्वयं को बुखारा में सुल्तान घोषित किया।

नजर मुहम्मद ने शाहजहाँ से सहायता माँगी। शाहजहाँ ने शहजादा मुराद और अलीमर्दानखाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी।

नजर मुहम्मद ईरान के शाह के यहाँ शरण लेने भाग गया।

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शाहजहाँ का बल्ख पर अधिकार

मुगल सेना ने बल्ख पर अधिकार कर लिया। यह शाहजहाँ की महान् उपलब्धि थी क्योंकि जो कार्य बाबर और अकबर नहीं कर पाये और वह उसने कर दिखाया।

शाहजहाँ ने 1646 ई. में औरंगजेब को बल्ख जाने का आदेश दिया। अब्दुल अजीज ने 1647 ई. में औरंगजेब से संधि की।

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विविध तथ्य

शाहजहाँ ने सन् 1648 में दिल्ली को राजधानी बनाया इससे पूर्व मुग़ल साम्राज्य की आगरा राजधानी थी

शाहजहाँ ने 1638 ई. में यमुना नदी के किनारे शाहजहाँनाबाद नगर की नींव डाली।

फिरोज तुगलक

शाहजहाँ दिल्ली सल्तनत में फिरोज तुगलक के बाद नहरों से पानी की आपूर्ति पर ध्यान देने वाला प्रथम मुगल शासक था।

शाहजहाँ ने नहर-ए-साहिब (फिरोज तुगलक द्वारा निर्मित) को न केवल ठीक करवाया बल्कि उसे 60 मील और लम्बा किया व उसका नाम नहर-ए-शाह रखा।

ट्रैवनियर

ट्रैवनियर मुगल साम्राज्य की यात्रा करने वाला फ्रांसीसी यात्री।

शाहजहाँ ने अपने खर्च एवं निर्माणकारी शौक को पूर्ण करने हेतु ज्यादा पैसे की आवश्यकता की पूर्ति हेतु कर की दर को 1/3 से बढ़ाकर 1/2 कर दिया।

सर्वप्रथम चित्रकला में सोने व चांदी का प्रयोग शाहजहाँ के समय किया गया।

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कलीम

कलीम शाहजहाँ का दरबारी राजकवि

जगन्नाथ

जगन्नाथ शाहजहाँ का राजकवि, गगांधर लहरी पुस्तक लिखी।

पादशाहनामा

पादशाहनामा-अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा रचित ग्रंथ

शाहजहाँ के समय मुगलों व मराठों में संघर्ष हुआ।

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बर्नियर, मनूची एवं ट्रेवेनियर विदेशी यात्री

बर्नियर, मनूची एवं ट्रेवेनियर विदेशी यात्री, शाहजहाँ के शासन काल का वर्णन किया।

शाहजहाँ की मृत्यु

शाहजहाँ प्रथम मुगल शासक था जो अपने जीवनकाल में ही गद्दी से वंचित होकर कैदी बना लिया गया।

शाहजहाँ अपने जीवन के अंतिम 8 वर्ष आगरा के किले में निर्मित शाहबुर्ज / मुसम्मन बुर्ज में कैद में रहा।

शाहजहाँ प्रथम मुगल शासक था जो अपने जीवनकाल में गद्दी से हटाकर कैद में डाला गया।

शाहजहाँ का अंतिम समय बड़े दु:ख और मानसिक क्लेश में बीता था।

उस समय उसकी प्रिय पुत्री जहाँआरा उसकी सेवा के लिए साथ रही थी।

शाहजहाँ ने कैद के वर्षों को अपने पूर्व वैभवपूर्ण जीवन को याद/स्मरण करते हुये और ताजमहल को अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए बिताये थे।

अंत जनवरी मे , सन् 1666 में उसका देहांत हो गया। उस समय उसकी आयु 74 वर्ष की थी।

शाहजहाँ को उसकी प्रिय बेगम के पार्श्व में ताजमहल में ही दफ़नाया गया था

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