Rao Amarsingh Rathod

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जोधपुर के राजा गजसिंह ने अपने बड़े पुत्र अमरसिंह को उसकी स्वतंत्र एवं विद्रोही प्रवृत्ति से नाराज होकर राज्य से निकाल दिया था। इस पर शाहजहाँ ने अमरसिंह को नागौर परगने का स्वतंत्र राजा बना दिया।

मतीरे की राड़ (1644 ई.) : 1644 ई. में नागौर राज्य की अंतिम सीमा पर स्थित एक किसान के खेत में मतीरे की बेल लगी।

बेल खेत की मेढ़ पार करके बीकानेर राज्य की सीमा में स्थित एक किसान के खेत में चली गयी और वहाँ पर एक मतीरा लग गया जिस पर स्वामित्व को लेकर दोनों किसानों में झगड़ा हो गया।

इस समय बीकानेर के नरेश कर्णसिंह थे। यह झगड़ा सैनिकों तक जा पहुंचा और दोनों तरफ के कई सैनिक मारे गये, जो मतीरे की राड़ नाम से प्रसिद्ध हुई।

उस समय अमरसिंह शाहजहाँ की सेवा में आगरा में थे।

जब अमर सिंह को इस झगड़े की जानकारी हुई तो उसने नागौर जाने के लिये बादशाह से अवकाश लेना चाहा।

बीकानेर नरेश ने शाहजहाँ के बख्शी सलावत खां को सिखा दिया कि किसी भी तरह अमरसिंह को बादशाह से मत मिलने देना।

जब अमरसिंह कई दिन तक बादशाह से मिलकर अवकाश नहीं मांग सका तो एक दिन उसने बख्शी से पूछे बिना बादशाह को सलाम कर लिया।

इस पर बख्शी सलावतखां ने उसे गंवार कह दिया। अमर सिंह ने नाराज होकर उसी समय अपनी कटार निकाली और बख्शी को मार डाला। बाद में खलीमुल्ला व बिट्ठदास के पुत्र अर्जुन से युद्ध करते हुए शहीद हुए।  

अमरसिंह राठौड़ राजकुमारों में अपने साहस और वीरता के लिए प्रसिद्ध है। आज भी इसी के नाम से ‘अमरसिंह राठौड़ के ख्याल’ प्रसिद्ध हैं।

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