Prithvi Raj Chauhan

आइये आज हम पृथ्वीराज चौहान (Prithvi Raj Chauhan) के बारें में अध्ययन करेंगे

Table of Contents

पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान) (1177-1192 ई.)

अजमेर के चौहान वंश का अंतिम प्रतापी शासक पृथ्वीराज तृतीय(पृथ्वीराज चौहान) था

पृथ्वीराज चौहान का जन्म

सन 1166 ईस्वी में हुआ

पृथ्वीराज चौहान का जन्म स्थान

अन्हिलपाटन (गुजरात)

पृथ्वीराज चौहान के पिता का नाम

सोमेश्वर

पृथ्वीराज चौहान की माता का नाम

कर्पूरदेवी

राज्य शासन प्राप्ति  की आयु

11 वर्ष (1177 ई.)- पृथ्वीराज चौहान की माता कर्पूरदेवी ने बड़ी कुशलता से प्रारंभ में इसके राज्य को संभाला। मुख्यमंत्री कदम्बवास अत्यधिक वीर, विद्वान व स्वामीभक्त था तथा सेनाध्यक्ष भुवनैकमल्ल कर्पूरदेवी का संबंधी था। पृथ्वीराज ने प्रारंभिक वर्षों में अपने विरोधियों यथा चाचा अपरगांग्य, अपने चचेरे भाई नागार्जुन व भण्डानकों को समाप्त किया। उससे उसका राज्य दिल्ली से अजमेर तक एक हो गया। सन 1182 ई. के लगभग पृथ्वीराज ने महोबा के परमार्दिदेव (चन्देलों) को हराकर वहाँ अपना अधिकार किया। विजयी पृथ्वीराज पंजुनराय को महोबा का उत्तराधिकारी नियुक्त कर लौट आया। 

आल्हा-उदल

आल्हा और उदल महोबा के परमार्दिदेव (चन्देल शासक) के दो वीर सेनानायक थे जो अपने शासक से रूठकर पड़ोसी राज्य में चले गये थे। जब 1182 ई. में पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण किया तो परमार्दिदेव ने अपने दोनों वीर सेनानायकों के पास यह संदेश भिजवाया कि तुम्हारी मातृभूमि पर पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमण कर दिया है। दोनों परमवीर सेनानायक पृथ्वीराज के विरुद्ध युद्ध में वीरता से लड़ते हुए अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुए तथा अपनी वीरता, शौर्य एवं बलिदान के कारण इतिहास में अमर हो गए।

  पृथ्वीराज चौहान के दरबार में विद्वान, कवि और साहित्यकार

पृथ्वीराज चौहान विद्वान, कवि और साहित्यकारों का सम्मान करने वाला था,  ‘ पृथ्वीराज विजय’ का लेखक जयानक, वागीश्वर, जनार्दन आशाधर, पृथ्वीभट्ट, विश्वरूप, विद्यापति गौड़ आदि अनेक विद्वान, कवि और साहित्यकार पृथ्वीराज चौहान के  दरबार की शोभा बढाते थे। उसके शासनकाल में ‘सरस्वती कण्ठाभरण’ नामक संस्कृत विद्यालय में 85 विषयों का अध्ययन-अध्यापन होता था । ऐसे अनेक विद्यालय मौजूद थे जिन्हें राजकीय संरक्षण प्राप्त था। इस प्रकार वह एक महान् विधानुरागी शासक था।

Prithvi Raj Chauhan

पृथ्वीराज चौहान द्वारा अजमेर को सुरक्षित करने के लिए करवाए गये निर्माण कार्य

पृथ्वीराज चौहान ने तारागढ़ नाम के दुर्ग को सुदृढता प्रदान की ताकि अपनी राजधानी की शत्रुओं से सुरक्षा की जा सके। पृथ्वीराज चौहान ने  अजमेर नगर के चारों ओर अनेक मंदिरों एवं महलों का निर्माण करवाया। राजस्थान के इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा उसके गुणों के आधार पर ही उसे योग्य एवं रहस्यमयी शासक बताते हैं। वह सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान राजपूतों के इतिहास में अपनी सीमाओं के बावजूद एक योग्य एवं महत्त्वपूर्ण शासक रहा। पृथ्वीराज विजय के लेखक जयानक के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने युद्धों के वातावरण में रहते हुए भी चौहान राज्य की प्रतिभा को साहित्य एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में पुष्ट किया।

Prithvi Raj Chauhan

पृथ्वीराज चौहान की चालुक्यों पर विजय

गुजरात के चालुक्यों और अजमेर के चौहानों के बीच दीर्घकाल से संघर्ष चला आ रहा था। किन्तु सोमेश्वर के शासनकाल में दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। पृथ्वीराज तृतीय के समय यह संघर्ष पुन: चालू हो गया। पृथ्वीराज रासो के अनुसार संघर्ष का कारण यह था कि पृथ्वीराज तृतीय तथा चालुक्य नरेश भीमदेव द्वितीय दोनों आबू के शासक सलख की पुत्री इच्छिनी से विवाह करना चाहते थे। पृथ्वीराज रासो में संघर्ष का दूसरा कारण यह बताया है कि पृथ्वीराज तृतीय के चाचा कान्हा ने भीमदेव द्वितीय के सात चचरे भाइयों को मार दिया था, इसलिए भीमदेव ने अजमेर पर आक्रमण कर नागौर पर अधिकार कर लिया तथा सामेश्वर को मार डाला। युद्ध का वास्तविक कारण यह था कि पृथ्वीराज तृतीय के राज्य की सीमाएं नाडौल व आबू को स्पर्श कर रही थी। चालुक्यों का राज्य नाडौल तथा आबू तक फैला हुआ था और अतः दोनों में संघर्ष होना स्वाभाविक था। 1184 ई. में दोनों पक्षों के बीच घमासान किन्तु अनिर्णायक युद्ध हुआ और अन्त में 1187 ई. के आस-पास चालुक्यों के महामंत्री जगदेव प्रतिहार के प्रयासों से दोनों में एक अस्थायी संधि हो गयी।

पृथ्वीराज चौहान-गहड़वाल वैमनस्य

दिल्ली को लेकर चौहानों में और गहड़वालों में वैमनस्य एक स्वाभाविक घटना बन गयी थी। इसी के कारण  विग्रहराज चतुर्थ और विजयचन्द्र गहड़वाल में युद्ध हुआ था जिसमें विजयचन्द्र को पराजित होना पड़ा था। पृथ्वीराज की दिग्विजय की नीति एवं दिल्ली मुद्दे ने पृथ्वीराज चौहान एवं जयचन्द्र गहड़वाल के मध्य वैमनस्य अत्यधिक बढ़ा दिया। दोनों ही महत्त्वाकांक्षी शासक थे। इस द्वैषता में पृथ्वीराज चौहान द्वारा जयचन्द्र गहड़वाल की पुत्री संयोगिता के हरण ने और वृद्धि की।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता

पृथ्वीराजरासों के अनुसार संयोगिता जयचन्द्र गहड़वाल की पुत्री थी पृथ्वीराज और संयोगिता में प्रेम था जिसकी अवहेलना जयचन्द्र ने की। जयचन्द्र न राजसूय यज्ञ का आयोजन किया जिसके साथ-साथ संयोगिता का स्वयंवर भी रचा गया। परन्तु पृथ्वीराज को उसमें नहीं बुलाया गया। उसने पृथ्वीराज को अधिक अपमानित करने के लिए उसकी लोहे की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर खड़ी कर दी। जब स्वयंवर का समय आया तो राजकुमारी ने अपने प्रेमी पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में वरमाला डाल दी। चौहान राजा भी अपने सैन्य बल के साथ घटनास्थल पर पहुँच गया और बुध्दिकौशल से संयोगिता को उठाकर चल पड़ा। संयोगिता को अजमेर लाकर उसके साथ विवाह कर लिया।

Prithvi Raj Chauhan

संयोगिता अपहरण की वास्विकता

डॉ. त्रिपाठी, विश्वेश्वरनाथ रेऊ तथा डॉ. ओझा संयोगिता हरण को सच नहीं मानते हैं और इनके अनुसार यह सम्पूर्ण कहानी काल्पनिक है। डा. दशरथ शर्मा ने अपनी किताब (अर्ली  चौहान डायनेस्टी)में सत्य माना है , सी.वी. वैद्य ने संयोगिता के अपहरण की घटना को ऐतिहासिक माना है।

तराईन का प्रथम युद्ध (1191 ई.)

पृथ्वीराज के समय ही उत्तर पश्चिमी भाग में शहाबुद्दीन मुहम्मद  गौरी का शासन था। सन्  1186 से 1191 ई. तक मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित हुआ। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 07 बार, पृथ्वीराज प्रबंध में 08 बार पृथ्वीराज रासो में 21 बार प्रबंध चिंतामणि में 23 बार मोहम्मद गौरी के पराजित होने का उल्लेख है। अंतत: 1191 ई. में मुहम्मद गौरी ने बड़ी सेना के साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण कर दिया। वर्तमान करनाल (हरियाणा) के पास तराइनकेमैदानमें दोनों की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें मोहम्मद गौरी की भारी पराजय हुई। पृथ्वीराज चौहान  के दिल्ली सामंत गोविन्दराज ने अपनी बर्छी के वार से मुहम्मद गौरी को घायल कर दिया। घायल गौरी अपनी सेना सहित गजनी भाग गया। पृथ्वीराज ने तबरहिन्द पर अधिकार कर काजी जियाउद्दीन को बंदी बना लिया जिसे बाद में एक बड़ी धनराशि के बदले रिहा कर दिया गया।

तराईन का द्वितीय युद्ध ( 1192 ई.)

मुहम्मद गौरी 1192 ई. में वह पुनः तराईन के मैदान में आ धमका। पृथ्वीराज के साथ उसके बहनोई मेवाड़ शासक समरसिंह एवं दिल्ली के गवर्नर गोविंदराज भी थे। इस युद्ध में पृथ्वीराज की बुरी तरह हार हुई तथा भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई।

पृथ्वीराज की पराजय के कारण

पृथ्वीराज के पास विशाल सेना के होते हुए भी उसके पराजित होने के अनेक कारण थे। मिनहाज-उस-सिराज के अनुसार गौरी की सेना सुव्यवस्थित एवं पृथ्वीराज की सेना एकदम अव्यवस्थित थी जो उसकी हार का सबसे बड़ा कारण था। सामन्ती सेना की वजह से केन्द्रीय नेतृत्व का अभाव होना, अच्छे योद्धाओं व अधिकारियों का प्रथम युद्ध में मुत्यु हो जाना पराजय के बहुत बड़े कारण थे। सुबह-सुबह शौचादि के समय असावधान राजपूत सेना पर अचानक आक्रमण करना। प्रथम युद्ध को अंतिम युद्ध मानकर उपेक्षा का आचरण करना, उत्तर-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा का उपाय न करना, दिग्विजय नीति से अन्य राजपूत शासकों को अपना शत्रु बनाना एवं युद्ध के समय एक मोर्चा न बनाने के लिए पृथ्वीराज स्वयं जिम्मेदार था।

Prithvi Raj Chauhan

Prithvi Raj Chauhan
Prithvi Raj Chauhan

पृथ्वीराज चौहान के सामन्तों, का विश्वासघात

प्रतापसिंह जैसे सामन्तों का पृथ्वीराज चौहान को हराने के भेद शत्रुओं को बताना भी हार का कारण बना।

तराईन के द्वितीय युद्ध के परिणाम

इस युद्ध ने भारतीय इतिहास को बदल कर रख दिया था, जिसके परिणामस्वरूप भारत में मुस्लिम सत्ता (राज्य) की स्थापना हुई और हिन्दू सत्ता का अंत हुआ। आर.सी. मजूमदार के शब्दों में इस युद्ध से न केवल चौहानों की शक्ति का विनाश हुआ, अपितु पूरे हिन्दू धर्म का विनाश ला दिया। इसके बाद लूटपाट, तोड़फोड़, बलात् धर्म परिवर्तन, मंदिरों-मूर्तियों का विनाश आदि का घृणित प्रदर्शन हुआ जिससे हिन्दू कला और स्थापत्य का विनाश हुआ। इस्लाम का प्रचार-प्रसार, फारसी शैली का आगमन, मध्य एशिया से आर्थिक-सांस्कृतिक सम्बन्धों की स्थापना, वाणिज्य व्यापार एवं नगरीकरण का प्रसार, नये वर्गो एवं शिल्पों का विकास आदि इसके दूरगामी परिणाम थे जिसे इरफान हबीब नई शहरी क्रान्ति की संज्ञा देते हैं।

पृथ्वीराज चौहान ( पृथ्वीराज तृतीय) का मूल्यांकन

पृथ्वीराज चौहान को ‘अन्तिम हिन्दू सम्राट’ कहा जाता है। यह ‘रायपिथोरा‘ के नाम से भी प्रसिद्ध था। पृथ्वीराज चौहान शाकम्भरी के चौहानों में ही नहीं अपितु राजपूताना के राजाओं में भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। उसने मात्र 11 वर्ष की आयु में अपनी प्रशासनिक एवं सैनिक कुशलता के आधार पर चौहान राज्य को सुदृढीकृत किया। अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए दिग्विजय की नीति से तुष्ट किया, न केवल अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया अपितु आंतरिक विद्राहों तथा उपद्रवों का दमन कर समूचे राज्य में  शांति एवं व्यवस्था स्थापित कर उसे सुदृढ़ता भी प्रदान की। पृथ्वीराज ने अपने चारों ओर के शत्रुओं का खात्मा कर ‘दलपगुंल’ (विश्वविजेता) की उपाधि धारण की। इस प्रकार अपने प्रारंभिक काल में शानदार सैनिक सफलताएँ प्राप्त कर अपने आपको महान् सेनानायक एवं विजयी सम्राट सिद्ध कर दिखाया। परन्तु उसके शासन का दूसरा पक्ष भी था जिसमें उसकी प्रशासनिक क्षमता एवं रणकौशलता में त्रुटियाँ दृष्टिगत होती है। उसमें कूटनीतिक सूझबूझ की कमी थी और उसकी दिग्विजय नीति से पड़ोसी शासक शत्रु बन गए। सभंवतः तराईन के मैदान में  हारने का प्रमुख कारण यही रहा। वह न केवल  वीर , साहसी एवम सैनिक  प्रतिभाओं से युक्त था, अपितु विद्ववानों एवं कलाकारों का आश्रयदाता भी था ‘पृथ्वीराज रासो’ का लेखक चन्दरबरदाई, प्रथ्वीराज विजय का लेखक जयानक ,वागीश्वर , जनार्दन ,आशाधर , पृथ्वी भट्ट , विश्वरूप ,विधापति  गौड़, आदि अनेक विधवान , कवी साहित्यकार उसके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। उसने मुस्लिम आक्रमणों को गंभीरता से नहीं लिया और न ही वह अपने शत्रु के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा खड़ा कर सका। संभवतः तराईन के मैदान में हारने का प्रमुख कारण यही रहा।

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु 

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु  के सम्बंध में इतिहासकारों में मत्यैक नहीं है कहा जाता है की पराजित पृथ्वीराज चौहान को सिरसा के पास सरस्वती नामक स्थान पर बंदी बना लिया गया। पृथ्वीराज रासो के अनुसार बंदी पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी अपने साथ गजनी ले गया जहां शब्द भेदी बाण के प्रदर्शन के समय पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को मार डाला।  

इस संबंध में यह कहा जाता है की मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बहुत यातनाएँ दी और पृथ्वीराज चौहान की दोनों आखें गरम लोहे की सलाखों से निकलवा दी , पृथ्वीराज चौहान के साथ उसका राजकवि चंदबरदाई भी साथ था उससे चौहान की यह दशा देखि नहीं गई  और उसने सुल्तान से पृथ्वीराज चौहान के  शब्द भेदी बाण (आवाज सुनकर उस पर अचूक निशाना लगाना) चलाने के प्रदर्शन की अनुमति माँगी इस शब्द भेदी बाण के प्रदर्शन के दौरान चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को एक दोहा सुनाया जो इस प्रकार है   

ता ऊपर सुल्तान(मुहम्मद गौरी) है, मत चूको चौहान ।।

इसी प्रदर्शन के दौरान सुल्तान की आवाज सुनकर पृथ्वीराज चौहान ने तीर सुल्तान के उपर छोड़ दिया और तीर सुल्तान के सीने चीरता हुआ सिंघासन में घुस गया और सुल्तान की मृत्यु हो गयी फिर चंदरबरदाई  ने अपनी तलवार निकली और चंदरबरदाई  ने पृथ्वीराज चौहान की गर्दन पर तेज प्रहार किया और उसी समय उसकी मृत्यु हो गयी और तुरंत ही चंदरबरदाई  ने अपने आप को भी तलवार घोंप कर मार डाला कहा जाता है पृथ्वीराज चौहान और चंदरबरदाई  दोनों जन्म भी एक ही दिन हुआ और मृत्यु भी एक ही दिन हुई ।

Prithvi Raj Chauhan

जबकि समकालीन इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार तराईन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी के अधीनस्थ शासक के रूप में अजमेर पर शासन किया था। इसामी के कथन के पक्ष में एक सिक्के का भी संदर्भ दिया जाता है जिसके एक तरफ मुहम्मद बिन साम और दूसरी तरफ पृथ्वीराज नाम अंकित है। इस तरह अजमेर एवं दिल्ली पर मुहम्मद गौरी का शासन स्थापित हो गया। तराईन के युद्ध के बाद गौरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को अजमेर का प्रशासक नियुक्त किया।

Read More

Prithvi Raj Chauhan

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

betano