Princely State Of Alwar

Princely State Of Alwar

अलवर रियासत

आइये आज हम अलवर रिसायत के बारे में अध्अययन करेंगे अलवर नाम को लेकर कई कहानियाँ प्रचलित है कनिंघम का मत है कि अलवर नगर को सल्व जन जाति से प्राप्त हुआ और मूल रूप से यह सल्वपुर था  फिर सल्वर हुआ फिर हल्वर हुआ और अन्त में अलवर प्राचीन मत्सय प्रदेश का हिस्सा रहा है

जिसकी राजधानी विराट नगर थी महाभारत काल में पांडवों ने यहाँ एकान्तवास व्यतित किया तथा राजा विराट की पुत्री उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से हुआ अलवर के महाराजा जयसिंह के शासनकाल में किये गये शोध से प्रकट हुआ

कि ग्यारवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में आमेर के महाराजा काकिल देव का शासन थे  और उनके द्वारा शासित प्रदेश की सीमा वर्तमान अलवर नगर तक फैली हुई थी उन्होंने सन 1059 ईस्वी में अलपुर बसाया।

अलवर का क्षेत्र (मेवात) 11वीं सदी में अजमेर के चौहानों के अधीन था। पृथ्वीराज चौहान की पराजय (1192 ई.) के बाद मेवाती स्वतंत्र हो गये।

1527 ई. में खानवा के युद्ध के बाद यह क्षेत्र मुगल साम्राज्य का अंग हो गया,  तत्पश्चात् यह जयपुर राज्य का अंग बना।

प्रताप सिंह नरूका मौहब्बत सिंह का पुत्र जिसने 1775 में अलवर राज्य की स्थापना की प्रारम्भ में वह जयपुर नरेश कि सेवा में था।

जब 1755 में मराठों में रणथम्भौर दुर्ग को घेर लिया तब उसने सैनिक सहायता देकर दुर्ग को मराठों के हाथों में जाने से बचाया सन 1765 में इसने मावण्डा युद्ध में भरतपुर नरेश जवारह सिंह जाट के विरूद्ध जयपुर नरेश माधोसिंह को सहायता दी थी।

मुगल बादशाह को भरतपुर नरेश के विरुद्ध भी प्रताप सिंह नरूका ने सहायता दी थी अतः बादशाह ने 1774 ईस्वी में इसको रावराजा बहादुर की उपाधि दी तथा माचेडी को जयपुर में स्वतंत्र राज्य मान लिया था। सन 1775 में 25 दिसम्बर को एक स्वतंत्र शासक बन गया।  

1775 ई. में प्रतापसिंह ने भरतपुर राज्य से अलवर छीनकर उसे अपनी राजधानी बनाया। तभी से यह अलवर राज्य बन गया।

Princely State Of Alwar

1803 ई. में राव राजा बख्तावर सिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि की। सन् 1815 में बख्तावर सिंह की मृत्यु के बाद उसके दो उत्तराधिकारी-विनयसिंह व बख्तावरसिंह एक साथ गद्दी पर बैठे।

परन्तु बाद में विनयसिंह (बन्नेसिंह) के दबाव से बख्तावर सिंह को कुछ परगने की जागीर देकर अलवर के शासक पद से हटा दिया गया। अलवर महाराणा जयसिंह ने ‘नरेन्द्र मंडल’ के सदस्य के रूप में 12 नवम्बर, 1930 को लंदन गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। नरेन्द्र मंडल’ को यह नाम महाराजा जयसिंह ने ही दिया था।

अंग्रेजी सरकार ने अलवर नरेश जयसिंह को उनकी सुधारवादी नीतियों के कारण 1933 में तिजारा दंगों के बाद पद से हटाकर राज्य से ही निष्कासित कर दिया था। इसके बाद  अलवर नरेश जयसिंह यूरोप चले गए, वहीं उनका पेरिस में सन् 1937 में देहान्त हुआ। 1938 ई. में अलवर में प्रजामंडल की स्थापना हुई।

अलवर के दीवान डॉ. एन. बी. खरे व महाराव तेजसिंह को महात्मा गाँधी की 30 जनवरी, 1948 को हुई हत्या के संदेह में भारत सरकार ने दिल्ली में नजरबंद कर दिया था और अलवर का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।

देश आजाद  होने के पश्चात् अलवर का मत्स्य संघ में विलय हो गया।

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