Pratihara of Mandore
Pratihara of Mandore
आइये आज हम मण्डौर के प्रतिहार वंश के बारे में अध्ययन करेंगे
Table of Contents
राजा हरिश्चंद्र
मण्डौर प्रतिहार वंश के संस्थापक राजा हरिश्चंद्र थे जिनके वंशजों ने मण्डौर में शासन किया। गुर्जर प्रतिहारों की 26 शाखाओं में से सबसे प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण मण्डौर के प्रतिहार थे।
जोधपुर सन् 837 ई. एवं घटियाला सन् 861 ई. शिलालेखों के अनुसार ‘हरिश्चन्द्र नामक ब्राह्मण’ (रोहिलद्धि) के दो पत्नियाँ थी। एक ब्राह्मणी और दूसरी क्षत्राणी भद्रा ब्राह्मणी पत्नी से उत्पन्न संतान ब्राह्मण प्रतिहार एवं क्षत्राणी भद्रा से उत्पन्न संतान क्षत्रिय प्रतिहार कहलाये।
भद्रा के चार पुत्र उत्पन्न हुए भोगभट्ट, कद्दक, रज्जिल और दह ( दद्द ) इन चारों ने मिलकर मण्डौर को जीतकर गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की। वैसे रज्जिल तीसरा पुत्र था फिर भी मण्डौर की वंशावली इससे प्रारम्भ होती है।
हरिश्चन्द्र का समय छठी शताब्दी के आसपास का था। लगभग 600 वर्षों में अपने शासन काल में मण्डौर के प्रतिहारों ने प्रेम और शौर्य से उज्जवल कीर्ति को अर्जित किया।
इसी शाखा का नागभट्ट प्रथम जो रज्जिल का पोता था, वह बड़ा प्रतापी शासक था। जब उसने देखा कि मण्डौर में प्रतिहारों की स्थिति सुदृढ़ हो गयी है तो उसने अपनी राजधानी को वहाँ से बदलकर मेड़ता स्थापित किया जो मण्डौर से 60 मील से भी अधिक दूरी पर है।
Pratihara of Mandore
शीलुक
इस वंश के दसवें शासक शीलुक ने वल्ल देश में अपनी सीमा को बढ़ाया और वल्ल मण्डल के शासक भाटी देवराज को युद्ध में हराकर उसके छत्र का स्वामी बना। उसकी भट्टि (भाटी) वंश की महारानी पद्मिनी से बाउक और दूसरी रानी दुर्लभदेवी से कक्कुक नाम के दो पुत्र हुए।
बाउक
कक्कुक का पुत्र बाउक हुआ जो अपने शत्रु नन्दवल्लभ को मारकर भूअकूप में आ गया। यह वह बाउक है जिस 837 ई. की जोधपुर प्रशस्ति में अपने वंश का वर्णन अंकित कराकर मण्डौर के एक विष्णु मन्दिर में लगवाया था।
कक्कुक
बाउक के बाद उसका भाई कक्कुक मण्डौर के प्रतिहारों का नेता बना। कक्कुक ने वि.सं. 861 (918 ई.) में दो शिलालेख उत्कीर्ण करवाये जो घटियाला के लेख के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन शिलालेखों से उसकी न्याय प्रियता तथा प्रजापालक होने के गुण स्पष्ट होते हैं। वह स्वयं विद्वान था और विद्वानों को आश्रय देता था।
मण्डौर का गढ़ इन्दा शाखा के प्रतिहारों ने परिहार हम्मीर से तंग आकर राववीरम के पुत्र राठौड चूँड़ा को 1395 ई. में दहेज में दिया।
इस घटना के साथ मण्डौर के परिहारों/प्रतिहारों के राजनीतिक विस्तार का इतिहास समाप्त हो गया। मण्डौर शाखा के प्रतिहार अपने क्षेत्र में लम्बे समय तक स्वतन्त्र थे ।
कक्कुक की रानी के लिए ‘महाराज्ञि’, नागभट्ट तथा तात के राज्य केन्द्र के लिए ‘राजधानी’ और उनके पुत्रों के लिए ‘भूधर’, ‘भूपति’ शब्द के प्रयोग उनके राजनीतिक महत्त्व के द्योतक हैं।
Pratihara of Mandore

उत्प्लावकता एवं आर्किमिडीज नियम
विद्युत का दैनिक जीवन में उपयोग
राजस्थान में प्राचीन सभ्यताओं के पुरातात्विक स्थल
पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान)
राजस्थान में चौहानों का इतिहास
राजस्थान में चौहानों का इतिहास-2