Pratihara of Bhinmal (Jalore)

आइये आज हमभीनमाल (जालौर) के प्रतिहार {Pratihara of Bhinmal (Jalore)} के बारें में अध्ययन करेंगे

नागभटट प्रथम ( 730-760 ई.)

इस शाखा का संसथापक नागभट्ट प्रथम था।

नागभट्ट प्रथम का समय 730-760 ई. माना जाता है यह बड़ा प्रतापी शासक हुआ इसका दरबार नागावलोक का दरबार कहलाता था।

यह राजा अवन्ती (उज्जैन) गुर्जर प्रतिहार के वंश का संस्थापक था कुवलयमला तथा अन्य एतिहासिक साधनों के आधर पर डॅा. दशरथ शर्मा नागभट्ट की राजधानी मानते हैं और दूसरे मत उज्जैन और कन्नौज को मानते हैं ।

नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में म्लेच्छों का नाशक कहा गया है  

वत्सराज (783-795 )

देवराज की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र वत्सराज सिंहासनासीन हुआ। इसने संभवतः 783 ई. से 795 ई. तक शासन किया। यह अपने समय का एक शक्तिशाली राजा सिद्ध हुआ। अपने अनेक युद्धों के परिणामस्वरूप इसने अपने वंश को अभूतपूर्व गौरव प्रदान किया। इसने अपने पराक्रम से गौड़ और बंगाल के शासकों को पराजित किया। इसके समय में लिखी गयी उदयोतन सूरि की ‘कुवलयमाला’, जो जालौर (भीनमाल) में लिखी गयी थी तथा 783 ई. में जैन आचार्य जिनसेन द्वारा लिखा गया हरिवंश पुराण अपने ढंग के अच्छे ग्रन्थ हैं। वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ था जिसे भी नागवलोक कहते हैं। यह एक महत्त्वाकांक्षी शासक सिद्ध हुआ।

पालों से युद्ध

जिस समय प्रतिहार वंश उत्तरी भारत में अपनी सार्वभौमता की नींव रख रहा था, उस समय बंगाल में पाल वंश भी चक्रवर्ती बनने के स्वप्न देख रहा था। इन दोनों साम्राज्यवादी राजवंशों के मध्य में कान्यकुब्ज का निर्बल आयुध वंश था। प्रतिहार और पाल दोनों इस वंश को अपने प्रभाव क्षेत्र में लेने की योजना बना रहे थे। इसके समय  से भारतीय इतिहास में कन्नौज को प्राप्त करने के लिए पूर्व में बंगाल से पाल, दक्षिण से मान्यखेत के राष्ट्रकूट एवं उत्तर पश्चिम से उज्जैन के प्रतिहारों के मध्य लगभग डेढ़ सदी तक संघर्ष चला। इसे भारतीय इतिहास में ‘त्रिपक्षीय संघर्ष’ या ‘त्रिकोणात्मक संघर्ष’ कहा जाता है। त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरुआत गुर्जर प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की थी। वल्सराज ने पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया। इसने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया। इसलिए वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।

नागभटट द्वितीय ( 795-833 )

वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभटट द्वितीय गद्दी पर बैठा, इसे नागावलोक भी कहते है। नागभटट द्वितीय ने कान्यकुब्ज (कन्नौज) पर अधिकार कर उसे प्रतिहार सम्राज्य की राजधानी बनाया।

नागभटट द्वितीयने कन्नौज के चक्रायुद्ध को हराया । ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने तुरूश्कों (मुसलमानों) को पराजित किया, अंतिम दिनों में राष्ट्रकूटों के भय से नाग द्वितीय ने गंगा में जल समाधि ली थी।

Pratihara of Bhinmal (Jalore)

रामभद्र (833-836)

नागभटट द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र रामभद्र सिंहासन पर बैठा इसने 833 से लेकर 836 राज्य किया यह अत्यंत निर्बल शासक सिद्ध हुआ।   

मिहिर भोज प्रथम ( 836-885 )

यह इस वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था। ‘मिहिर’ एवं ‘प्रभास’ उसकी उपाधियाँ है।

अरबी यात्री सुलेमान

सुलेमान “मिहिरभोज का साम्राज्य समृद्ध था क्योंकी उसके राज्य में बहुत सी सोने-चाँदी की खाने थी। वह इस्लाम धर्म का बहुत बड़ा शत्रु था। उसके पास विशाल अश्वसेना थी, और उसका राज्य चोरों और डकैतो से मुक्त था। 9वीं सदी में भारत आने वाला अरब यात्री सुलेमान पाल शासक एवं प्रतिहार शासकों (मिहिरभोज) के तात्कालीन आर्थिक, राजनैतिक तथा सामाजिक स्थिति का वर्णन करता है।

भोज प्रथम मिहिरभोज की उपाधि आदिवराह (ग्वालियरअभिलेख) थी। वह परम भागवत् भक्त था।  वह विष्णु का उपासक था। कल्हण एवं अरबी यात्री सुलेमान (जो मिहिर भोज प्रथम के शासन काल में भारत आया) के विवरण से भी इसकी जानकारी मिलती है।

महेन्द्रपाल प्रथम

भोज ने कन्नौज को पुनः प्राप्त कर उसे प्रतिहारों की राजधानी बनाया। (रामभद्र के काल में यह प्रतिहारों के हाथ से निकल गया था) उसने राष्ट्रकूट कृष्ण तृतीय को हराकर मालवा प्राप्त किया। सुलेमान ने भोज को अरबों का सबसे बड़ा शत्रु बताया। भोज ने आदिवराह द्रम्म नामक सिक्का चलाया तथा उसके एक तरफ वराह की आकृति अंकित करवायी। मिहिरभोज पाल देवपाल एवं राष्ट्रकूट ध्रुव से पराजित हुआ था।

 मिहिरभोज के पश्चात उसका पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम (885-910) शासक बना लेखों में उसे परमभटटारक, महाराजधिराज, परमेश्वर कहा गया है।

महेन्द्रपाल प्रथम की सभा में प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर निवास करता था, जो महेन्द्रपाल प्रथम का राजगुरू था। राजशेखर ने कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, विद्धशालभंजिका, बालभारत, बालरामायण, भुवकोश, हरविलास एवं प्रचण्ड पाण्डव जैसे ग्रन्थों की रचना की। में तथा अन्य ग्रन्थ संस्कृत भाषा में, कर्पूरमंजरी प्राकृत भाषा रचित है।

महेन्द्रपाल के शासन काल में सांस्कृतिक एवं राजनैतिक दोनों क्षेत्रों में प्रतिहार साम्राज्य की अभूतपूर्व प्रगति हुई।

भोज द्वितीय (910-913)

महेंद्रपाल के शासन की अंतिम तिथि 910 ईस्वी. है ऐसा प्रतीत होता है कि उसके दो पुत्र थे- भोज द्वितीय और महीपाल प्रथम। इनमें से भोज द्वितीय का उल्लेख एशियाटिक सोसायटी ताम्रपत्र में हुआ है। वहाँ इसे महेन्द्रपाल और देहनागा देवी का पुत्र बताया गया है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि ये दोनों राजकुमार सौतेले भाई थे। भोज द्वितीय ने संभवत: 910 ई. से लेकर 913 ई. तक राज्य किया, क्योंकि महीपाल प्रथम की सर्वप्रथम तिथि 914 ई. प्राप्त होती है। 

Pratihara of Bhinmal (Jalore) भीनमाल (जालौर) के प्रतिहार

Pratihara of Bhinmal (Jalore)
Pratihara of Bhinmal (Jalore)

महिपाल प्रथम (914-943)

महिपाल एक कुशल एवं प्रतापी शासक था, उसके शासन काल में बगदाद निवासी अल मसूदी गुजरात आया। क्षेमेश्वर ने अपने ग्रन्थ चण्डकोशिकम् में महिपाल की विजयों का उल्लेख किया।

अलमसूदी गुर्जर प्रतिहारों को ‘अल गूजर’ (गुर्जर का अपभ्रंश) और राजा को ‘बौरा’ कहकर पुकारता था, जो संभवत आदिवराह का अशुद्ध उच्चारण है। राजस्थान का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास राजशेखर महिपाल का भी राजगुरू था। उसने महिपाल प्रथम को रघुवश मृकुटमणि तथा रघुकुल मुक्तामणि’ कहा। उसने उसे आर्यवर्त का महाराजधिराज भी कहा। महिपाल प्रथम के बाद प्रतिहार साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो जाता है।

 महेन्द्रपाल द्वितीय (945-948 ई.)

महीपाल प्रथम की मृत्यु के पश्चात् महेन्द्रपाल द्वितीय सिंहासन पर बैठा इसकी माता का नाम प्रसाधना देवी था। ग्रन्थों की रचना से महेन्द्रपाल के समय के समाज, शिक्षा-स्तर आदि का बोध होता है। महेन्द्रपाल का समय 946-948 ई. रहा। प्रतिहार राजवंश में महेन्द्रपाल द्वितीय के बाद सन् 960 ई. तक चार शासक हुए।

 देवपाल (948-49 ई.)

विनायकपाल द्वितीय (953-54ई.)

महिपाल द्वितीय (955 ई.)

विजयपाल ( 960 ई.)

हवेनसांग ने गूर्जर राज्य को पश्चिम भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य कहा। इस वंश का अंतिम शासक यशपाल (1036) था। अलमसूदी, सुलेमान, अबूजैद आदि अरब यात्रियों ने गूर्जर प्रतिहारों को जुज कहा।

Pratihara of Bhinmal (Jalore)

Q. प्रतिहार वंश के संस्थापक हरिश्चंद्र की राजधानी कौनसी थी?

Ans. राजधानी कन्नौज   

Q. राजस्थान के गुर्जर प्रतिहार की शाखा का प्रथम शासक कौन था ?

Ans. नागभटटप्रथम730-760 ई.

Q. उद्धोतन सूरी किसका दरबारी था?

Ans. वत्सराज ( 783-795 )

Q. प्रतिहार वंश का महानतम राजा कौन था?

Ans. मिहिर भोज प्रथम ( 836-885 )

Q. गुर्जर प्रतिहार वंश की प्रथम राजधानी कौनसी थी? 

Ans. कन्नौज

Q. प्रतिहार वंश के संस्थाप कौन है?

Ans. हरिश्चंद्र 6वीं शताब्दी 

Q. गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम राजा कौन था? 

Ans. यशपाल 1039 ई.

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