Origin of life

Origin of life

जीवन की उत्पत्ति ब्रह्मण्ड के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण परिघटना है, जो कि अन्ध विश्वासों से भरी है। जीवन की उत्पत्ति सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्त इस प्रकार हैं

प्राचीन सिद्धान (Ancient theory)

 ये सिद्धान्त सैकड़ों वर्ष पूर्व दिये गये कुछ लोगों के विचारों पर आधारित हैं, जो इस प्रकार हैं

विशिष्ट सर्जन का सिद्धान्त (Theory of special creation)

यह सिद्धान्त प्राकृतिक शक्ति पर आधारित है, जिसका प्रतिपादन स्पेनिश पादरी फादर सुरेज (Saurez) ने किया ।

इस सिद्धान्त के अनुसार सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति ईश्वर द्वारा छह दिनों में की गई, जिसमें प्रथम दिन पृथ्वी एवं स्वर्ग, दूसरे दिन आकाश, तीसरे तीन दिन भूमि एवं पौधे, चौथे दिन सूर्य, चन्द्रमा एवं अन्य ग्रह, पाँचवें दिन पक्षी एवं मछलियाँ तथा छठे दिन मानव एवं अन्य जन्तुओं की उत्पत्ति हुई।

स्वतः जनन सिद्धान्त (Spontaneous generation

theory) या अजीवात जनन (Abiogenesis) इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति अजीवित पदार्थों से स्वतः ही हुई है।

डेमोक्रीट्स (Democritus ) के अनुसार पदार्थ छोटे-छोटे कणों के बने होते हैं तथा जीवन, स्लाइम (Slime) व पानी से कणों के अचानक संयोजित हो जाने से उत्पादित होता है।

प्लेटो तथा एरिस्टोटल (Plato and Aristotle) का भी यही विचार था कि जीवन की उत्पत्ति अदृश्य जादुई शक्ति (Immortal Mystic power) से होती है।

वॉन हैल्मान्ट (Van Helmont) के अनुसार गेहूँ के भूसे के साथ पसीने से भीगी कमीज रखने पर कुछ ही दिनों में चूहे उत्पन्न हो जाते हैं।

एनाक्सिमेण्डर (Anaximander) के अनुसार सभी स्थलीय जीवों का विकास जलीय जीवों से हुआ है।

हक्सले (Huxley) ने इस सिद्धान्त की आलोचना की और कहा कि जीवन की उत्पत्ति केवल पूर्व में विद्यमान जीव से ही होती है।

जैव जनन (Biogenesis) या जीवात् जनन

फ्रान्सिसको रेड्डी (Francesko Redi) के अनुसार माँस से कभी भी लार्वा उत्पन्न नहीं होते हैं। माँस की गंध से मक्खियाँ आकर्षित होती हैं, ये अण्डे देती हैं, फिर मक्खियाँ उत्पन्न होती हैं।

स्पैलैन्जनी (Spallanzani) के अनुसार एक कोशिकीय जीव भी अजीवित पदार्थ से उत्पन्न नहीं हो सकता ।

लुईस पाश्चर (Louis Pasteur) ने अपने प्रयोग में हंस की गर्दन के जैसे फ्लास्क का उपयोग किया जिसमें फ्लास्क के अन्दर तथा बाहर वायु का आदान-प्रदान हो सके, परन्तु सूक्ष्मजीव जीवाणु आदि नली से चिपक जायें।

फ्लास्क को शर्करा के घोल एवं यीस्ट से आधा भरा तथा घोल को उबालकर ठण्डा करके रख दिया।

बहुत दिनों तक रखे रहने पर भी घोल नहीं सड़ा तथा न ही उसमें सूक्ष्म जीव उत्पन्न हुये परन्तु फ्लास्क की नली तोड़ने पर कुछ ही समय में सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति देखी गई।

यंत्रवाद सिद्धान्त (Mechanistic theory)

क्यूवियर (Cuvier) के अनुसार महाप्रलय के कारण सम्पूर्ण जीवन नष्ट हो जाता है तथा इसके बाद नया जीवन उत्पन होता है।

कोस्मोजोइक या बीजाणु सिद्धान्त (Cosmozoic or spore theory)

आर्हीनियस (Arrhenius) के अनुसार पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति अन्य ग्रहों से बीजाणुओं के आने से हुई है।

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आधुनिक सिद्धान्त (Modern theory)

इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी पर उपस्थित अकार्बनिक व कार्बनिक पदार्थों के अल्ट्रावॉयलेट किरणों से क्रिया होने पर जीवन की उत्पत्ति हुई। इसके समर्थन में निम्न सिद्धान्त हैं

ओपेरिन का सिद्धान्त (Oparin’s hypothesis )

ओपेरिन (Oparin- 1924) के अनुसार जीवन का उद्भव अजीवित कार्बनिक अणुओं से हुआ है. अतः इसे जैव रासायनिक उद्भव भी कहते हैं।

हेल्डेन एवं बेन्टनर (Haldane and Bentener 1929) ने भी ओपेरिन से मिलता-जुलता विचार प्रस्तुत किया जिसे ओपेरिन ने अपनी पुस्तक ‘द ओरिजिन ऑफ लाइफ’ 1936 में प्रस्तुत किया ।

इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 45 से 6 अरब वर्ष पूर्व हुई। जब पृथ्वी गर्म से ठण्डी हो रही थी तब विभिन्न तत्वों एवं गैसों ने घनत्व के अनुसार अपने पृथक-पृथक स्तर बना लिए। भारी तत्व केन्द्र में, हल्के तत्व मध्य भाग में एवं गैसें सतह पर तैरने लगीं।

प्रारम्भ में पृथ्वी का तापमान 5000-6000°C था। इस तापमान में सतह पर उपस्थित गैसों (कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन व ऑक्सिजन) के संयोग से जल, मीथेन एवं अमोनिया का निर्माण हुआ।

जब पृथ्वी का तापमान धीरे धीरे कम हुआ तो गैसों ने तरल एवं ठोस रूप ले लिया। तापमान और कम होने पर पृथ्वी में पानी रोकने की क्षमता आ गई।

वायुमण्डल में उपस्थित मीथेन एवं अमोनिया बरसात के जल में घुलकर समुद्री जल में एकत्रित होते गये तथा नदियों द्वारा भी खनिज प्रचुर मात्रा में समुद्र में आता गया ।

पृथ्वी के और अधिक ठण्डा होने पर मीथेन का संघनन हुआ जिससे एथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन, एथेलीन, एसिटिलीन आदि हाइड्रोकार्बन्स का निर्माण हुआ ।

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एन पदार्थों की जलवाष्प से क्रिया द्वारा मेथिल एल्कोहॉल, एथिल एल्कोहॉल आदि का निर्माण हुआ।

धीरे-धीरे विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा शर्कराओं, वसीय अम्लों, अमीनो अम्लों, प्यूरीन्स एवं पिरीमिडिन्स जैसे यौगिकों का निर्माण हुआ।

इन यौगिकों के परस्पर संयोजन से कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन्स, न्यूक्लिक अम्ल, न्यूक्लियो प्रोटीन आदि जटिल दीर्घअणुओं (Complex macromolecules) का निर्माण हुआ।

ऐसा माना जाता है प्रथम जीव की उत्पत्ति इन जटिल दीर्घ अणुओं के रासायनिक संश्लेषण द्वारा समुद्र में हुई।

समुद्र के उबलते जल में जटिल कार्बनिक अणुओं से कॉलायडी कणों का निर्माण हुआ

जिन्हें फॉक्स (Fox) ने माइक्रोस्फीयर्स (Microspheres) कहा। इन माइक्रोस्फीयर्स से बने कॉलायडी तन्त्र को ओपेरिन ने कोएसरवेटस (Coacervates) नाम दिया । इन्हीं से आद्य कोशिका (Primitive cell) का निर्माण हुआ।

हीकल ने इन आद्य कोशिकाओं को मोनेरा में सम्मिलित जीवों का पूर्वज माना। नील हरित शैवाल (Blue green algae) को प्रथम प्रकाश संश्लेषी जीव माना है, जिनका उद्भव 3.5 अरब वर्ष पूर्व का माना जाता है।

प्रारम्भ में जीवन की उत्पत्ति के समय वातावरण में  ओक्सिज़न (O2 ) अनुपस्थित थी।

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मिलर का प्रयोग (Miller’s experiment 1953)

अमेरिकी वैज्ञानिक स्टेनले मिलर (Stanley Miller 1953) ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के समय का वातावरण प्रयोगशाला में तैयार करके यह प्रयोग किया।

मिलर ने अपने प्रयोग में मीथेन, अमोनिया एवं हाइड्रोजन गैस को 2 : 1 : 2 के अनुपात में बड़े फ्लास्क में लिया। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के समय गैसों का यही अनुपात पर्यावरण में उपस्थित था।

गैसों युक्त बड़े फ्लास्क को काँच की नली की सहायता से छोटे फ्लास्क से जोड़ा गया, जिसमें जल भरा था। गैस युक्त फ्लास्क में टंगस्टन के दो इलेक्ट्रोड लगाकर उसमें 60,000 वोल्ट की विद्युतधारा प्रवाहित की गई।

एक सप्ताह पश्चात U-नलिका में लाल रंग का पदार्थ दिखाई दिया। परीक्षण करने पर इसमें ग्लाइसीन, एलानीन, एस्पार्टिक अम्ल पाये गये जो कि केन्द्रक के सघंटक हैं। इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इन जटिल यौगिकों से हुई है।

फॉक्स का प्रयोग (Fox’s experiment)

फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के सिडनी एफ. फॉक्स (Sidney F.Fox) ने सजीवों में पाये जाने वाले विभिन्न अमीनों अम्लों के मिश्रण को 90° तक गर्म करके प्रोटीन के समान जटिल अणु प्राप्त किये।

इनकी संरचना छोटी कोशिका के समान थी, जिसे माइक्रोस्फीयर्स (Microspheres) कहा गया ।

झिल्ली द्वारा घिरे इन माइक्रोस्फीयर्स को आसुत जल में रखने पर ये फूल जाते हैं तथा लवण के घोल में रखने पर सिकुड़ जाते हैं,

परन्तु इनका सूक्ष्मदर्शी परीक्षण करने पर कोई भी कोशिकीय संरचना दिखाई नहीं दी ।

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