Maharana Sanga

महाराणा सांगा(Maharana Sanga) (1509-1528 )

आइये आज हम महाराणा सांगा के बारे में अध्ययन करेंगे

महाराणा सांगा अपने पिता महाराणा रायमल (Maharana Raimal) की मृत्यु के बाद सन 1509 ई. में, 27 वर्ष की आयु में मेवाड़(Mewar) का शासक बना। मेवाड़ के महाराणाओं में वह सबसे अधिक प्रतापी  योद्धा था।

Table of Contents

महाराणा सांगा(Maharana Sanga) द्वारा लड़े गये प्रमुख युद्ध

खातोली(बूँदी) का युद्ध1517 में साँगा व दिल्ली सुल्तान इब्राहीम लोदी के मध्य, साँगा की विजय हुई।
बाड़ी(धौलपुर) का युद्ध1518 ई.में सांगा ने दिल्ली शासक इब्राहिम लोदी को पराजित किया।
गागरोन(झालावाड़) का युद्ध1519 में महाराणा सांगा ने मालवा शासक महमूद खिलजी द्वितीय व गुजरात शासक मुजफ्फर शाह द्वितीय को पराजित किया।  
बयाना(भरतपुर) का युद्ध16 फरवरी 1527 में सांगा ने बाबर की सेना को पराजित कर बयाना का किला जीता।
खानवा(भरतपुर) का युद्ध17 मार्च 1527 बाबर ने सांगा को पराजित किया।  

महाराणा रायमल के पुत्रों(पृथ्वीराज, जयमल  और संग्राम सिंह) के बीच उत्तराधिकार के लिए संघर्ष

रायमल के ही जीवनकाल में ही सत्ता  के लिए पुत्रों के बीच आपसी संघर्ष  प्रारम्भ हो गया। कहा जाता है कि एक बार कुंवर पृथ्वीराज, जयमल  और संग्राम सिंह ने  अपनी-अपनी जन्मपत्रियां  एक ज्योतिषी को दिखलाई। उन्हें देखकर उसने कहा कि ग्रह तो पृथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे है

परन्तु राजयोग संग्रामसिंह के पक्ष में होने के कारण मेवाड़ का स्वामी वही  होगा। यह सुनते ही दोनों भाई संग्रामसिंह पर टूट पड़े, पृथ्वीराज ने हुल मारी जिससे संग्रामसिंह की एक आँख फूट गई।

महाराणा रायमल के चाचा सारंगदेव ने इस समय तो बीच-बचाव कर किसी तरह कुंवरों (पृथ्वीराज, जयमल  और संग्राम सिंह) को शांत किया, सारंगदेव ने सांगा की आँख का इलाज भी करवाया  

किन्तु दिनों-दिन कुंवरों में विरोध का भाव बढाता ही गया। सारंगदेव ने समझाया कि ज्योतिषी के कथन पर विश्वास कर तुम्हे आपस में संघर्ष नहीं करना चाहिये। इससे तो यह अच्छा रहेगा की  भीमल गाँव की चारण जाति की पुजारिन से, इस सम्बन्ध में निर्णय करा लें जो चमत्कारिक है,

इस हेतु पृथ्वीराज जयमल, संग्रामसिंह, और रायमल का चाचा अपने साथिओं के साथ भीलगाँव की देवी की मंदिर की पुजारिन के पास पहुंचे पुजारिन ने ज्योतिषी की भविष्यवाणी का समर्थन किया

इसको सुनते ही तीनों में वहीं युद्ध आरम्भ हो गया कुँवर पृथ्वीराज जिसे अपने बल पर अधिक विशवास था पुजारिन की बात को असत्य करने के लिए संग्रामसिंह पर टूट पड़ा यदि सारंगदेव उस समय बीच में न आता तो संग्रामसिंह का सर धड़ से अलग हो जाता इस सम्बन्ध में एक दोहा भी प्रसिद्ध है

पीथल खग हाथां पकड़, वह सांगा किय बार (peethal khag haathaan pakad, vah saanga kiy baar)

सारंग झेले सीस पर, उणवर सांगा उबार ।। (saarang jhele sees par, unavar saanga ubaar)

इस प्रकार के आपसी युद्ध में पृथ्वीराज, सारंगदेव तथा संग्रामसिंह घायल हो गये वे एक-दुसरे से बचने के लिए इधर-उधर भागे, भागता हुआ संग्रामसिंह और उसका पीछा करता हुआ जयमल सेवन्त्री गाँव पहुँचे

यहाँ राठौड़ बीदा ने संग्रामसिंह को शरण दी और स्वयं जयमल के साथ लड़ता हुआ मारा गया संग्रामसिंह गौड़वाड के मार्ग से बचकर अजमेर पहुँचा जहाँ कर्मचन्द पँवार ने उसे पनाह(Refuge) दी और वहाँ कुछ समय अज्ञातवास(agyaatavaas) के रूप में रहकर अपनी शक्ति का संगठन(Organization) करता रहा।

बदलती हुई परिस्थिति और सांगा का राज्यरोहण 

वैसे तो संग्रामसिंह के लिए राज्य प्राप्ति का अवसर सम्भव नहीं दिखाई दे रहा था, फिर भी परिस्थितियाँ उनके अनुकूल होती चली गयीं।

कुँवर पृथ्वीराज की मृत्यु

महाराणा रायमल के पुत्र  कुँवर पृथ्वीराज(Prithviraj)की मृत्यु धोखे से विष की गोलियाँ खाने (निगलने) से हो गयी

कुँवर जयमल की मृत्यु

महाराणा रायमल के पुत्र  कुँवर जयमल(Jaimal) सोलंकियों से युद्ध करता हुआ  मारा गया।

सारंगदेव की हत्या

महाराणा रायमल के चाचा सारंगदेव(Sarangdev) की हत्या पृथ्वीराज(Prithviraj)के द्वारा हो चुकी थी।

सूरजमल

सूरजमल भी नये राज्य की स्थापना की तलाश में कांठल की ओर चल दिया।

संग्रामसिंह के विरोधियों का  समाप्त होना और संग्रामसिंह को उत्तराधिकारी घोषित करना

अब संग्रामसिंह(Sangram Singh)के विरोधियों की संख्या समाप्त हो चुकी थी और रायमल(Raimal)के लिए संग्रामसिंह(Sangram,Singh)को उत्तराधिकारी (Successor)   घोषित करने के अतिरिक्त कोई मार्ग न था।

सम्भवतः जब रायमल मृत्यु शैय्या(death bed) पर था तब ही  संग्रामसिंह को अजमेर से आमन्त्रित कर मेवाड़(Mewar) के राज्य का स्वामी बनाया गया।

अपनी सूझबूझ, कर्त्तव्यनिष्ठा तथा घटना-चक्र के सहयोग ने सांगा के मेवाड़-नेतृत्व के स्वप्न को 1509 ई. में साकार सिद्ध किया।

सांगा की प्रारम्भिक कठिनाईयां  

सांगा वैसे तो मेवाड़ का शासक बन गया परन्तु उसने पाया की उसका राज्य चारों ओर शत्रुओं से घिरा हुआ है दिल्ली में लोदी वंश का सुल्तान सिकन्दर, गुजरात महमूद शाह बेगडा और मालवा में नसरुधीन राज्य करते थे   

गुजरात के सुल्तान के साथ संघर्ष  

ईडर के राव भाण(Rao Bhan) के दो पुत्र सूर्यमल और भीम थे।सांगा के समय गुजरात (Gujarat) और मेवाड़ के बीच संघर्ष(struggle) का तत्कालीन कारण ईडर का प्रश्न था

 सूर्यमल

राव भाण की मृत्यु के बाद  उसका पुत्र सूर्यमल गद्दी पर बैठा किन्तु उसकी भी 18 माह बाद ही मृत्यु हो गई। अब सूर्यमल के स्थान पर उसका दूसरा  बेटा रायमल ईडर की गद्दी पर बैठा  

भीम

रायमल के चाचा भीम ने रायमल के अल्पायु होने का लाभ उठाकर राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। इस समय रायमल ने महाराणा सांगा (Maharana Sanga) के पास जाकर  मेवाड़ में शरण ली यहाँ पर महाराणा सांगा(Maharana Sanga) ने अपनी पुत्री की सगाई(Engagement) रायमल के साथ कर दी।

महाराणा सांगा(Maharana Sanga) की सहायता से रायमल ने 1515 ई. में भीम के पुत्र भारमल को हटाकर ईडर(eider) पर पुनः अधिकार कर लिया।

गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर

भीम ने गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर की आज्ञानुसार ईडर पर अधिकार किया था। परंतु भारमल को हटाकर रायमल को ईडर का शासक बनाए जाने से गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर बहुत अप्रसन्न हुआ

अहमदनगर के जागीरदार निजामुल्मुल्क

नाराज सुल्तान मुजफ्फर ने अहमदनगर के जागीरदार निजामुल्मुल्क को आदेश दिया कि यह रायमल को हटाकर भारमल को पुन: ईडर की गद्दी पर बैठा दे। निजामुल्मुल्क द्वारा ईडर पर घेरा डालने पर रायमल पहाड़ों में चल गया और पीछा करने पर निजामूल्मुल्क को पराजित किया। ईडर के आगे रायमल का अनावश्यक पीछा किए जाने से नाराज सुल्तान ने निजामुल्मुल्क को वापिस बुला लिया।

ईडर का हाकिम मुवारिजुल्मुल्क

इसके बाद सुल्तान द्वारा मुवारिजुल्मुल्क को ईडर का हाकिम नियुक्त किया गया। एक भाट के सामने एक दिन मुवारिजुल्मुल्क ने सांगा की तुलना एक कुत्ते से कर दी यह जानकारी मिलने पर सांगा वागड़ के राजा उदयसिंह के साथ ईडर जा पहुंचा पर्याप्त सैनिक न होने के कारण मुवारिजुल्मुल्क ईडर छोड़कर अहमदनगर भाग गया सांगा ने ईडर की गद्दी पर रायमल को बैठा दिया और अहमदनगर बड़गनर वीसलनगर आदि स्थानों को लूटता हुआ चितौड़ वापस  लौट आया।

मालिक अयाज किवामुल्मुल्क और मालवा का सुल्तान महमूद

सुल्तान मुजफ्फर ने 1520 ई. में सांगा के आक्रमण से हुई बर्बादी का बदला लेने के लिए मालिक अयाज किवामुल्मुल्क(maalik ayaaj kivaamulmulk) की अध्यक्षता में दो अलग-अलग सेनाएं मेवाड़ पर आक्रमण के लिए भेजी।

मालवा का सुल्तान महमूद भी इस सेना के साथ आ मिला किन्तु मुस्लिम अफसरों में अनबन के कारण मलिक अयाज आगे नहीं बढ सका और संधि कर उसे वापिस लौटना पड़ा।

दिल्ली सल्तनत के साथ संघर्ष 

सांगा ने सिकंदर लोदी के समय ही दिल्ली के अधीनस्थ इलाकों पर अधिकार करना  शुरू कर दिया था किन्तु अपने राज्य की निर्बलता के कारण वह महाराणा के साथ संघर्ष के लिए तैयार नहीं हो सका

खातोली (कोटा) का युद्ध (1517 ई.)

सिकन्दर लोदी(Sikandar Lodi) के उत्तराधिकारी इब्राहीम लोदी(Ibrahim Lodi) ने 1517 ई. में मेवाड़(Mewar) पर आक्रमण कर दिया खातोली (कोटा) नामक स्थान(place) पर दोनों पक्षों के बीच युद्ध हुआ जिसमें सांगा की विजयी हुई सुलतान युद्ध के मैदान से भाग निकलने में सफल रहा किन्तु उसके एक शाहजादे(prince) को कैद कर लिया गया खातोली युद्ध में तलवार से सांगा का बायां हाथ कट गया और घुटने पर तीर लगने से वह हमेशा के लिए लंगड़ा हो गया

बाड़ी (धौलपुर) का युद्ध (1518 ई.)

मियां माखन की अध्यक्षता में सांगा के विरुद्ध  खातोली की पराजय का बदला लेने के लिए 1518 ई. में इब्राहीम लोदी ने बाड़ी (धौलपुर) नामक स्थान पर एक बड़ी सेना भेजी एक बार फिर सांगा ने लड़े गये युद्ध(war) में शाही सेना को पराजित किया 

मलवा के साथ सम्बन्ध

मेदिनीराय(Medinirai) नाम के एक हिन्दू सामंत ने मालवा के अपदस्थ सुलतान महमूद खिलजी दृतीय को पुन: शासक बनाने में सफलता प्राप्त की थी इस कारण सुलतान महमूद ने उसे अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया सुलतान के मुस्लिम अमीरों को मेदिनीराय की बढती हुई शक्ति से काफी ईर्ष्या हुई और उन्होंने सुलतान को उसके विरुद्ध बरगलाने में सफलता प्राप्त कर ली मेदिनीराय महाराणा सांगा(Maharana Sanga) की शरण में मेवाड़(Mewar) आ गया, जहाँ उसे गागरोण(Gagron) व चंदेरी की जागीरें(Jagirs) दे दी गयी

गागरोण का युद्ध (1519 ई.)

1519 ई. में सुल्तान महमूद मेदिनीराय पर आक्रमण के लिए रवाना हुआ इस बात की खबर लगते ही सांगा भी  एक बड़ी सेना के साथ गागरोण पहुँच गया यहाँ हुई लड़ाई में सुल्तान की बुरी तरह पराजय हुई सुल्तान का पुत्र आसफखां इस युद्ध में मारा गया तथा वह स्वयं घायल हुआ सांगा सुल्तान को अपने साथ चित्तौड ले गया, जहाँ उसे तीन माह कैद रखा गया।

महाराणा का उदार व्यवहार  मालवा के सुलतान महमूद खिलजी दृतीय के प्रति

एक दिन महाराणा सांगा(Maharana Sanga) सुल्तान को एक गुलदस्ता(Bouquet) देने लगा इस पर उसने कहा कि किसी चीज के देने के दो तरीके होते हैं एक तो अपना हाथ ऊँचा कर अपने से छोटे को देवें या अपना हाथ(hand) नीचा कर बड़े को नजर(vision) करें। मैं तो आपका कैदी(prisoner) हूँ इसलिए यहाँ नजर(vision) का तो कोई सवाल(Question) ही नहीं और भिखारी(Beggar) की तरह केवल इस गुलदस्ते(bouquets) के लिए हाथ पसारना मुझे शोभा नहीं देता

यह उत्तर सुनकर महाराणा बहुत प्रसन्न हुआ और गुलदस्ते के साथ सुलतान को मालवा का आधा राज्य सौंप दिया सुलतान ने अधीनता के चिन्हस्वरूप रत्नजटित मुकुट तथा सोने की कमरपेटी महाराणा को सौंप दिये। आगे के अच्छे व्यवहार के लिए महाराणा ने सुल्तान के एक शाहजादे को जमानत के तौर पर चित्तौड़ में रख लिया।

मुस्लिम इतिहासकारों ने महाराणा सांगा के इस उदार व्यवहार की काफी प्रशंसा की है किन्तु मेवाड़ राज्य के लिए यह नीति हानिकारक रही।

बाबर और सांगा

बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध (1526 ई.) में इब्राहीम लोदी को पराजित कर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली। शीघ्र ही बाबर और सांगा के बीच संघर्ष प्रारम्भ हो गया जिसके निम्नलिखित कारण थे:-

महाराणा सांगा(Maharana Sanga) पर वचनभंग का आरोप

बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ जो की तुर्की भाषा में लिखी है उसमें लिखा है सांगा ने मेरे पास दूत भेजकर दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए कहा और में स्वंय(महाराणा सांगा) आगरा पर आक्रमण करूँगा परन्तु राणा सांगा ने ऐसा ना कर मुझे दिया गया वचन तोड़ दिया

मैंने दिल्ली(Delhi) और आगरा(Agra) पर अधिकार जमा लिया तो भी सांगा की तरफ से हिलने का कोई चिह्न दृष्टिगत(in view) नहीं हुआ।

महाराणा सांगा(Maharana Sanga) पूर्व में इब्राहीम लोदी को अकेला ही दो बार पराजित(defeated) कर चुका था, ऐसे में उसके विरुद्ध(against) काबुल से बाबर को भारत आमन्त्रित(invited) करने का आरोप तर्कसंगत प्रतीत(prateet) नहीं होता।

महत्त्वकांक्षाओं का टकराव

बाबर इब्राहीम लोदी पर विजय के बाद सम्पूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था । ‘हिन्दूपत’ (हिन्दू प्रमुख) सांगा को पराजित किए बिना ऐसा संभव नहीं था। दोनों का उत्तरी भारत(North India) में एक साथ बने रहना ठीक वैसा ही था जैसे एक म्यान में दो तलवारें(Swords) ।

राजपूत और अफगान मैत्री

यद्यपि पानीपत के प्रथम युद्ध में अफगान पराजित हो गए थे किन्तु वे बाबर को भारत से बाहर निकालने के लिए प्रयासरत थे। इस कार्य के लिए सांगा को उपयुक्त पात्र समझकर अफगानों के नेता हसनखां मेवाती और मृतक सुल्तान इब्राहीम लोदी का भाई महमूद लोदी उसकी शरण में पहुँच गए। राजपूत-अफगान मोर्चा बाबर के लिए भय का कारण बन गया। इस कारण से बाबर ने महाराणा सांगा(Maharana Sanga) की शक्ति को नष्ट करने का फैसला (Decision) कर लिया।

 दिल्ली (सल्तनत) के क्षेत्रों पर महाराणा सांगा द्वारा अधिकार करना

पानीपत के युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय से उत्पन्न अव्यवस्था का लाभ  उठाते हुए सांगा ने खण्डार दुर्ग (रणथम्भौर के पास) व उसके निकटवर्ती 200 गांवों को अधिकृत कर लिया जिससे वहाँ के मुस्लिम परिवारों को हमेशा के लिए जाना पड़ा।

दोनों शासकों ने भावी संघर्ष(struggle) को देखते हुए अपनी-अपनी स्थिति सुदृढ़ (strong) करनी प्रारम्भ कर दी

मुगल सेनाओं(Mughal armies) ने बयाना, धौलपुर और ग्वालियर(Gwalior)पर अधिकार कर लिया जिससे बाबर(Babar) की शक्ति में वृद्धि हुई।

महाराणा सांगा(Maharana Sanga) के छत्र के नीचे युद्ध करने वाले शासक

इधर महाराणा सांगा के निमन्त्रण पर राजा और प्रमुख सरदार ससैन्य आ डटे।

(1)अफगान नेता हसनखां मेवाती

(2) सुल्तान इब्राहीम लोदी का भाई महमूद लोदी

(3)मारवाड़ का मालदेव

(4)आमेर का पृथ्वीराज

(5)ईडर का राजा भारमल

(6)वीरमदेव मेड़तिया

(7)वागड़ का रावल उदयसिंह

(8)सलूम्बर का रावत रत्नसिंह

(9)चंदेरी का मेदिनीराय

(10)सादड़ी का झाला अज्जा

(11)देवलिया का रावत बाघसिंह

(12)बीकानेर का कुंवर कल्याणमल

(13)मेव शासक हसन खां मेवाती

(14)डूंगरपुर का रावल उदयसिंह

(15)नागौर का खान जादा

महाराणा सांगा की सेना में  खानवा युद्ध में कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार सात राजा नो राव और 104 बड़े सरदार थे    

Maharana Sanga
Maharana Sanga

बयाना का युद्ध

बयाना में बाबर की तरफ से मेंहदी ख्वाजा बयाना दुर्ग रक्षक के रूप में तैनात था। फरवरी 1527 ई. में सांगा रणथम्भौर से बयाना पहुँच गया, सांगा ने दुर्ग को घेर लिया जिससे दुर्ग में स्थित मुगल सेना की स्थिति काफी खराब हो गई।

मोहम्मद सुल्तान मिर्जा की अध्यक्षता में बाबर ने बयाना की रक्षा के लिए एक सेना भेजी परन्तु महाराणा सांगा की सेना ने उसे खदेड़ दिया। अंत में बयाना के युद्ध में महाराणा सांगा की विजय हुई, सांगा की बयाना विजय बाबर के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण विजय थी ।

बाबर की खानवा (भरतपुर) युद्ध की तैयारी

शाहमंसूर किस्मती

बाबर महाराणा सांगा से युद्ध करने की तैयारियों में जुटा था परन्तु महाराणा की तीव्रगति, बयाना की लड़ाई और वहाँ से लौटे हुए शाहमंसूर किस्मती आदि से राजपूतों की वीरता की प्रशंसा सुनकर बाबर चिंतित हो गया।

मुस्लिम ज्योतिषी मुहम्मद शरीफ

इसी समय एक मुस्लिम ज्योतिषी मुहम्मद शरीफ ने भविष्यवाणी की कि मंगल का तारा पश्चिम में है, इसलिए पूर्व से लड़ने वाले पराजित होंगे। बाबर की सेना की स्थिति पूर्व में ही थी।

बाबर द्वारा अपने सैनिकों को उत्साहित करना

बाबर(Babar) ने चारों तरफ निराशा का वातावरण देख  अपने सैनिकों को उत्साहित (Excited) करने के लिए कभी शराब न पीने की प्रतिज्ञा(Pledge) की और शराब पीने की कीमती सुराहियां(jars) व प्याले(cups) तुड़वाकर गरीबों में बांट दिये।

बाबर द्वारा  सैनिकों के मजहबी भावों को उत्तेजित करना

बाबर ने सैनिकों के मजहबी भावों को उत्तेजित करने के लिए बाबर ने कहा “सरदारों और सिपाहियों प्रत्येक मनुष्य, जो संसार में आता है, वह अवश्य मरता है।

क्योंकि जो कोई इस संसार में पैदा होता है व अवश्य ही मरता है सदा जीवित नहीं रहता है क्योंकि शरीर तो नाशवान है और खुदा ने हम पर बड़ी कृपा की है की हम ये युद्ध मरते दम तक लड़े सभी कुरान हाथ में लेकर यह कसम खाओ की इस युद्ध में हम मर जाएंगे तो शहीद कहलायेंगे  और जीत जायेंगे तो गाजी कहलायेंगे

परन्तु कोई भी इस युद्ध से पीठ दिखा कर नहीं भागेगा बदनाम होकर जीने की अपेक्षा प्रतिष्ठा के साथ मरना अच्छा है। मैं भी यही चाहता हूँ कि कीर्ति के साथ मृत्यु हो तो अच्छा होगा इस तरह बाबर ने अपनी घबराई हुई और थकी हुई सेना में जोश भर दिया और इस युद्ध को जिहाद का रूप दिया   

रायसेन के सरदार सलहदी तंवर के द्वारा संधि वार्ता की बात भी महाराणा से करना  

महाराणा ने बाबर के संधि प्रस्ताव पर अपने सरदारों से बात की पहली बात तो सरदारों को  सलहदी की मध्यस्थता पसंद नहीं आई।

और दूसरी बात यह है कि उन्होंने अपनी सेना की प्रबलता और बाबर की निर्बलता प्रकट कर संधि की बात बनने न दी । इस संधि वार्ता का लाभ उठाते हुए बाबर तेजी से अपनी युद्ध की तैयारी करता रहा और खानवा के मैदान में आ डटा ।

खानवा (भरतपुर)का युद्ध

कविराज श्यामलदास कृत वीर विनोद के अनुसार खानवा (भरतपुर) के मैदान में 16 मार्च 1527 ई. को सुबह युद्ध प्रारम्भ हुआ।

पहली मुठभेड़ में महाराणा सांगा का पक्ष प्रबल था परन्तु राणा सांगा के सिर में अचानक एक तीर लगने के कारण सांगा को युद्ध भूमि से बहार जाना पड़ा।

राणा सांगा के घायल होने पर युद्ध भूमि से बहार जाने के कारण युद्ध संचालन की प्रार्थना सलूम्बर के रावत रत्नसिंह चूण्डावत से की इन्होंने उक्त्त प्रस्ताव यह कहकर अस्वीकार कर दिया की मेरे पूर्वज मेवाड़ का राज्य छोड़ चुके हैं में राज्य चिन्ह एक क्षण के लिए भी धारण नहीं कर सकता है   

परन्तु जो कोई राज्य चिन्ह धारण करेगा, उसकी पूर्ण रूप से सहायता करूंगा और प्राण रहने तक शत्रु से लडूंगा।

झाला अज्जा को हाथी पर बिठा कर युद्ध संचालन कर युद्ध जारी रखा गया। इसके बाद राजपूतों ने अंतिम दम तक युद्ध लड़ने का निश्चय किया परन्तु बाबर की सेना के सामने उनकी एक न चली और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

खानवा (भरतपुर)के युद्ध विजय के बाद बाबर ने गाजी की पदवी धारण की और विजय-चिह्न के रूप में राजपूत सैनिकों के सिरों की एक मीनार बनवाई।

सांगा की पराजय के कारण

राणा सांगा द्वारा बाबर को दोबारा युद्ध करने  के लिए समय देना

गौरीशंकर हीराचन्द ओझा इतिहासकार के मत अनुसार बयाना विजय के तुरन्त बाद ही युद्ध न करके बाबर को तैयारी करने का पूरा समय देना, सांगा की पराजय का मुख्य कारण था।

लम्बे समय तक युद्ध को स्थगित रखना महाराणा की बहुत बड़ी भूल सिद्ध हुई। महाराणा के विभिन्न सरदार देशप्रेम के भाव से इस युद्ध में शामिल नहीं हो रहे थे।

महाराणा के विभिन्न सरदार सभी अलग-अलग स्वार्थ से इस युद्ध में शामिल हुए थे, परन्तु यहाँ तक कि कईयों में तो परस्पर शत्रुता भी थी।

संधि वार्ताओं के कारण

कई दिन शांत बैठे रहने के कारण और संधि वार्ताओं के कारण से महाराणा सांगा के सरदारों में युद्ध के प्रति वह जोश व उत्साह नहीं रहा जो युद्ध के लिए रवाना होते समय था।

बाबर द्वारा खानवा (भरतपुर)के युद्ध में तोपों का इस्तेमाल करना

बाबर द्वारा खानवा (भरतपुर)के युद्ध में तोपों का उपयोग किया गया राजपूत सैनिक परम्परा गत हथियारों से युद्ध लड़ रहे थे। वह बाबर की तोपों के गोलों का मुकाबला वे तीर-कमान, भालों व तलवारों से नहीं कर सकते थे।

महाराणा सांगा का हाथी पर सवार होना

महाराणा सांगा ने हाथी पर सवार होकर भी बड़ी भूल की क्योंकि इससे शत्रु को महाराणा सांगा के ऊँचे स्थान(हाथी पर)पर बैठे होने के कारण  ठीक निशाना लगाकर घायल करने का मौका मिला। महाराणा सांगा के घायल होने के कारण युद्ध भूमि से सुरक्षित स्थान पर  बाहर जाने के कारण महाराणा सांगा की सेना का मनोबल कमजोर हुआ।

राणा सांगा की सेना में तालमेल का अभाव

महाराणा सांगा की  सम्पूर्ण सेना अलग-अलग सरदारों के नेतृत्व में एकत्रित हुई थी।

इसी कारण से राजपूत सेना में एकता और तालमेल की कमी थी  

सांगा के स्वंय हाथियों द्वारा सेना को रोंदना 

अपनी गतिशीलता के कारण राजपूतों की हस्ति सेना पर बाबर की अश्व सेना भारी पड़ी। बाबर की तोपों के गोलों से भयभीत हाथियों ने पीछे लौटते समय अपनी ही सेना को रौंद कर नुकसान पहुँचाया।

खानवा युद्ध के परिणाम

भारत में राजपूतों की सर्वोच्चता का अंत

भारत में राजपूतों की सर्वोच्चता का अंत हो गया। राजपूतों का वह प्रताप-सूर्य जो भारत के गगन के उच्च स्थान पर पहुँच कर लोगों में चकाचौंध उत्पन्न कर रहा था, अब अस्तांचल की ओर खिसकने लगा।

सांगा द्वारा निर्मित राजपूत संगठन समाप्त

सांगा द्वारा राजपूताने के सभी राज्यों को इस युद्ध में एक  साथ लाना  और विदेशियों के विरुद्ध एक  राजपूत संगठननिर्मित करना और यह संगठन खानवा युद्ध में पराजय के साथ ही समाप्त हो गया।

भारत में मुगल ाम्राज्य की स्थापना

भारत में मुगल साम्राज्य स्थापित हो गया महाराणा सांगा कि खानवा युद्ध में पराजय के पश्चात् बाबर ने  भारत मुग़ल वंश कि नींव डाल दी ।

Maharana Sanga

महाराणा सांगा का  मूल्यांकन

महाराणा सांगा वीर, उदार, कृतज्ञ, बुद्धिमान और न्यायपरायण शासक था। अपने शत्रु को कैद करके छोड़ देना और राज्य वापिस लौटा देने का कार्य सांगा जैसा वीर पुरुष ही कर सकता था।

प्रारम्भ से ही विपत्तियों में पलने के कारण वह एक साहसी वीर योद्धा बन गया था। अपने भाई पृथ्वीराज के साथ झगड़े में उसकी एक आंख फूट गई.

खातोली(khatoli) का युद्ध जोकि इब्राहीम लोदी और महाराणा सांगा(Maharana Sanga)  के बीच में हुआ था इसमें महाराणा सांगा(Maharana Sanga) का हाथ कट गया और एक पैर से वह लंगड़ा हो गया था ।

महाराणा सांगा के शरीर पर मृत्यु समय तक तलवारों व भालों के लगभग  80 घावों के निशान थे

महाराणा सांगा ने अपने पुरुषार्थ द्वारा मेवाड़ को उन्नति(Development)के शिखर पर पहुँचा दिया। शायद ही उसके शरीर का कोई ऐसा अंग  हो जिस पर युद्धों में लगे हुए घावों के चिह्न न हो।

महाराणा सांगा अपने समय का वह सबसे बड़ा हिन्दू नरेश(Hindu king) था महाराणा सांगा के आगे बड़े-बड़े शासक सिर झुकाते थे। जोधपुर और आमेर के राज्य भी उसका सम्मान करते थे।

अजमेर, सीकरी, कालपी चन्देरी, ग्वालियर, बूंदी, गागरोन, रायसेन,  रामपुरा और आबू के राजा महाराणा सांगा के सामंत थे।

महाराणा सांगा भारत का अंतिम नरेश था महाराणा सांगा के नेतृत्व में राजपूत नरेश विदेशियों(foreigners) को भारत से निकालने के लिए इकट्ठे हुए थे।

राणा सांगा अपनी बहादुरी और तलवार के बल पर बहुत बड़ा हो गया था बाबर ने महाराणा सांगा की प्रशंसा में लिखा है कि । गुजरात, दिल्ली, और मालवा(Malwa), का कोई एक  अकेला सुल्तान राणा सांगा को हराने में असमर्थ था।

महाराणा सांगा के राज्य की वार्षिक आय दस करोड़(one hundred million)थी। महाराणा सांगा की सेना में एक लाख सैनिक थे। महाराणा सांगा के साथ 07 राजा, 09  राव और 104 छोटे-बड़े सरदार रहा करते थे।

आपसी वैमनस्य के लिए प्रसिद्ध राजपूत शासकों(Rajput rulers) को एक झण्डे के नीचे लाना सांगा की सबसे महत्त्वपूर्ण(important) उपलब्धि(Availability) थी।

सांगा धर्म(Religion) और राजनीति(Politics) के बड़े मर्मज्ञ थे। एक बार उन्होंने अपने सरदारों के सम्मुख प्रस्ताव रखा कि “जिस प्रकार एक टूटी हुई मूर्ति पूजने योग्य नहीं रहती, उसी प्रकार मेरी आंख, भुजा और पैर अयोग्य(सांगा के  अंगहीन ) होने के कारण मैं सिंहासन पर बैठने का अधिकारी नहीं हूँ।

इस स्थान पर जिसे उचित समझें बैठावें। राणा के इस विनीत व्यवहार से सरदार बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि रणक्षेत्र में अंग-भंग होने से राजा का गौरव घटता नहीं अपितु बढ़ता है।

सांगा ने चारण हरिदास के द्वारा महमूद खिलजी को गिरफ्तार करने की खुशी में चारण हरिदास को चित्तौड़ का सम्पूर्ण राज्य दे दिया था, परन्तु  हरिदास ने सम्पूर्ण राज्य नहीं लिया परन्तु 12 गांवों लेकर ही अपनी खुशी प्रकट की।

एक बड़ा राज्य स्थिर करने वाला होने के बावजूद भी सांगा को राजनीति में अधिक निपुण नहीं कहा जा सकता। अपने शत्रु को पकड़कर छोड़ देना उदारता की दृष्टि में भले ही सही हो परन्तु राजनीति की दृष्टी से यह विचार सही नहीं था।

राणा सांगा द्वारा गुजरात के सुल्तान को जीतने पर भी  उसके भू-भाग  पर अधिकार न करना भी उसकी भूल थी। राणा सांगा द्वारा अपने छोटे लड़कों को रणथम्भौर जैसी बड़ी जागीर देकर उसने भविष्य के लिए कांटे  बो दिये ।

राणा की विशेष प्रीतिपात्रा होने के कारण हाड़ी रानी कर्मावती ने अपने दोनों पुत्रों विक्रमादित्य और उदयसिंह के लिए रणथम्भौर की जागीर लेकर अपने भाई सूरजमल हाड़ा को उनका संरक्षक नियुक्त करवा लिया था।

महाराणा सांगा(Maharana Sanga) की मृत्यु  

खानवा के युद्ध के बाद मूर्छित सांगा को बसवा ले जाया गया। होश आने पर सारा वृतांत जानकर सांगा काफी दुःखी हुआ और युद्ध स्थल से इतनी दूर लाने के लिए अपने सरदारों को भला-बुरा कहा।

जब सांगा बाबर से अपनी पराजय का बदला लेने के लिए चंदेरी जा रहा था तब मार्ग में इरिच नामक स्थान पर उसके युद्ध विरोधी सरदारों ने जहर दे दिया।

कालपी नामक स्थान पर 30 जनवरी 1528 ई. को मात्र 46 वर्ष की आयु में विष का प्रभाव होने पर सांगा का देहान्त हो गया। अमरकाव्य वंशावली के अनुसार सांगा का अंतिम संस्कार माण्डलगढ़ में किया गया।

Read More

कोटा के चौहान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *