INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

Table of Contents

1857 की महान क्रान्ति (Great Revolution of 1857), भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

लार्ड कैनिंग

लार्ड कैनिंग के गवर्नर जनरल के रूप में शासन करने के दौरान ही 1857 ई. की महान् क्राँति हुई।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पामस्टर्न

इस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पामस्टर्न थे। इस विद्रोह का आरम्भ 10 मई, 1857 को मेरठ में हुआ, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झाँसी, अवध आदि स्थानों पर फैल गया।

1857 की क्रान्ति का प्रतीक (SIGN) कमल और रोटी

हालांकि विद्रोह आरम्भ करने की तिथि 31 मई, 1857 ई. को निश्चित की गई थी। 1857 की क्रान्ति का प्रतीक कमल और रोटी था।

सैन्य विद्रोह

इस क्रांति की शुरुआत तो सैन्य विद्रोह के रूप में हुई परन्तु कालान्तर में उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम (FIRST FREEDOM STRUGGLE) कहा गया।

1857 की क्रांति(REVOLUTION) के बारे में इतिहासकारों के मत

पूर्णतया सिपाही विद्रोह था

सर जॉन लारेन्स व सीले

एक सामन्तवादी प्रतिक्रिया थी

के. मालेसन

 राष्ट्रीय विद्रोह था

बेंजामिन डिजरायली

अंग्रेजों के विरूद्ध हिन्दू-मुसलमानों का षड्यंत्र था

जेम्स आउट्रम, डब्ल्यू टेलर

विद्रोह राष्ट्रीय स्वतंत्रता (NATIONAL INDEPENDENCE) के लिए सुनियोजित युद्ध था

अशोक मेहता

1857 का विद्रोह स्वतंत्रता संग्राम नहीं था

आर. सी. मजूमदार

1857 का विद्रोह केवल एक सैनिक विद्रोह (JUST A MILITARY MUTINY) था

पी. राबर्ट्स

भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

विनायक दामोदर सावरकर

1857 के विद्रोह के स्वरूप को लेकर विद्वान एक मत नहीं हैं, बल्कि विद्वानों ने अलग-अलग मत प्रतिपादित किया है। 1857 का विद्रोह कोई अचानक भड़का हुआ विद्रोह नहीं था, वरन् इसके साथ अनेक आधारभूत कारण संलग्न हैं, जो निम्नलिखित हैं-

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

1857 के विद्रोह के कारण

राजनैतिक कारण
डलहौजी की गोद निषेध प्रथा(‘Adoption prohibition practice’) या हड़प नीति(‘usurpation policy’)

राजनीतिक कारणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण के रूप में डलहौजी को ‘गोद निषेध प्रथा’ या ‘हड़प नीति’ को माना जाता है।

डलहौजी ने अपनी इस नीति के अन्तर्गत सतारा, नागपुर, सम्भलपुर झाँसी, बराबर आदि राज्यों पर अधिकार कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप इन राजवंशों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असन्तोष व्याप्त हो गया।

कुशासन के आधार पर (ON THE BASIS OF BAD GOVERNANCE) डलहौजी ने हैदराबाद तथा अवध (HYDERABAD AND AWADH) को अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन कर लिया जबकि इन स्थानों पर कुशासन फैलाने के जिम्मेदार स्वयं अंग्रेज ही थे।

हेनरी लारेन्स

अवध के अधिग्रहण की जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। उस समय कम्पनी में अवध के 7500 सिपाही थे। अवध को एक चीफ कमिश्नर का क्षेत्र बना दिया गया। हेनरी लारेन्स पहला चीफ कमीश्नर नियुक्त हुआ था।

पंजाब और सिंध का विलय भी अंग्रेजी हुकूमत ने कूटनीति के द्वारा अंग्रेजी साम्राज्य में कर लिया जो कालान्तर में विद्रोह का एक कारण बना।

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

पेंशनों एवं पदों की समाप्ति

पेंशनों एवं पदों की समाप्ति से भी अनेक राजाओं में असन्तोष व्याप्त था। उदाहरणार्थं नाना साहब को मिलने वाली पेंशन को डलहौजी ने अपनी नवीन नीति के द्वारा बन्द करवा दिया।

मुगल सम्राट बहादुर शाह के साथ अंग्रेजों ने अपमानजनक व्यवहार करना प्रारम्भ कर दिया।

कैनिंग ने यह निश्चित कर दिया कि बहादुरशाह की मृत्यु के बाद मुगल सम्राट का पद समाप्त कर दिया जाएगा। मुगल सम्राट को केवल ‘राजा’ माना जाएगा तथा उन्हें लाल किला छोड़कर कुतुबमीनार की समीप किसी अन्य किले में स्थानान्तरित होना पड़ेगा।

इसके अलावा सिक्कों से बहादुरशाह का नाम हटा दिया गया जिससे जनता क्षुब्ध हो गई।

कुलीनवर्गीय भारतीय तथा जमींदारों के साथ अंग्रेजों ने बुरा व्यवहार किया और उन्हें मिले समस्त विशेषाधिकारों को कम्पनी की सत्ता ने छीन लिया।

ऐसी परिस्थिति में इस वर्ग के लोगों के असन्तोष का सामना भी ब्रिटिश सत्ता को करना पड़ा। भारतीय सरकारी कर्मचारियों ने अंग्रेजों द्वारा सरकारी नौकरियों में अपनायी जाने वाली भेदभावपूर्ण नीति का विरोध करते हुए विद्रोह में सिरकत की।

कुल मिलाकर भारतीय जनता अंग्रेजों के बर्बर प्रशासन से तंग आकर उनकी दासता से मुक्त होना चाहती थी. इसलिए 1857 की क्रांति हुई।

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

आर्थिक कारण
भारतीयों के धन का निष्कासन

1857 की क्रांति के लिए जिम्मेदार आर्थिक कारण इस प्रकार हैं- भारतीयों के धन का निष्कासन तीव्र गति से इंग्लैण्ड की ओर हुआ।

मुक्त व्यापार (FREE TRADE) तथा अंग्रेजी वस्त्रों के भारत के बाजारों में अधिक मात्रा में आ जाने के कारण उसका प्रत्यक्ष प्रभाव यहाँ के कुटीर उद्योगों (COTTAGE INDUSTRIES) पर पड़ा, जिस कारण से यहाँ के कुटीर एवं लघु उद्योग नष्ट हो गये। लाखों व्यक्ति बेरोजगार हो गए।

गवर्नर जनरल विलियम बैन्टिक

1834-1835 ई. में स्वयं गवर्नर जनरल विलियम बैन्टिक ने लिखा था कि व्यापार के इतिहास में ऐसा कोई दूसरा कष्टप्रद उदाहरण नहीं। भारत का मैदान सूती कपड़ा बुनने वालों के अस्थि पंजरों से भरा हुआ है।

माफी तथा इनाम की भूमि को छीनना

लार्ड विलियम बैंटिक ने अपने शासन काल में बहुत सी माफी तथा इनाम की भूमि को छीन लिया, जिसका प्रभाव यह हुआ कि अनेक भारतीय जमींदार दरिद्र एवं कंगाल हो गए और इस तरह इन जमींदारों में अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ असन्तोष व्याप्त हो गया।

स्थाई बंदोबस्त रैयतवाड़ी व्यवस्था

कृषि के क्षेत्र में अंग्रेजों को गलत नीति  के कारण भारतीय किसानों की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई। अंग्रेजों द्वारा स्थापित स्थाई बंदोबस्त रैयतवाड़ी व्यवस्था के लिए प्रतिकूल साबित हुआ

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

धार्मिक कारण
ईसाई धर्म

कहने के लिए तो ब्रिटिश सत्ता (BRITISH POWER) धर्म के मामले में तटस्थ थी, पर उसने ईसाई धर्म के प्रचार (EVANGELIZATION) में अपना पूर्ण सहयोग दिया।

ईसाई मिशनरियों का दृष्टिकोण भारत के प्रति बड़ा तिरस्कारपूर्ण था, उसका एक मात्र उद्देश्य भारत में अपनी सर्वोच्चता प्रदर्शित करना था।

अंग्रेज अपनी नीति के अनुसार अधिकांश भारतीयों को ईसाई बनाकर भारत में अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करना चाहते थे।

कम्पनी के अध्यक्ष मैगत्ज के हाउस ऑफ कॉमन्स

यह तथ्य कम्पनी के अध्यक्ष मैगत्ज के हाउस ऑफ कॉमन्स में दिये गये एक भाषण से स्पष्ट होता है। उसने कहा था कि “दैवयोग से भारत का विस्तृत साम्राज्य ब्रिटेन को मिला है ताकि ईसाई धर्म की पताका एक छोर से दूसरे छोर तक फहरा सके।

प्रत्येक व्यक्ति को शीघ्रताशीघ्र समस्त भारतीयों को ईसाई बनाने के महान् कार्य को पूर्णतया सम्पन्न करने में अपनी समस्त शक्ति लगा देनी चाहिए।”

वे ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों को सरकारी नौकरी, उच्च पद एवं अनेक सुविधाएँ प्रदान करते थे। 1813 के कम्पनी के आदेश पत्र द्वारा ईसाई पादरियों को आज्ञा प्राप्त करके भारत आने की सुविधा प्राप्त हो गयी।

परिणामतः बड़ी संख्या में ईसाई पादरी भारत आए जिनका मुख्य उद्देश्य ईसाई धर्म का प्रचार करना था। परिणामतः 1850 ई. में पास किये गये धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम’ (Emancipation Act) द्वारा हिन्दू रीति-रिवाजों में परिवर्तन लाया गया,

अर्थात् धार्मिक परिवर्तन से पुत्र अपने पिता की सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता था। इस कानून का मुख्य लाभ ईसाई बनने वालों को था। अंग्रेजों की इस नीति ने हिन्दू और मुसलमानों में कम्पनी के प्रति संदेह उत्पन्न कर दिया।

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

सामाजिक कारण

अंग्रेजों की अनेक नीतियाँ तथा कार्य ऐसे थे जिनसे भारतीयों में असन्तोष की भावना जन्म लेने लगी थी।

अंग्रेजों को अपनी श्वेत चमड़ी पर बड़ा नाम था और वे भारतीयों को काली चमड़ी कह कर उनका उपहास किया करते थे।

बैटिक ने अपने शासन काल में सती-प्रथा, बाल-हत्या, नर-हत्या आदि पर प्रतिबन्ध लगाकर तथा डलहौजी ने विधवा विवाह को मान्यता देकर रूढ़िवादी भारतीयों में असन्तोष भर दिया।

अंग्रेजों द्वारा रेल, डाक एवं तार क्षेत्र में किये गये कार्यों को भारतीयों में मात्र ईसाई धर्म के प्रचार का माध्यम मानने के कारण अंग्रेजों के प्रति उनके मन में विद्रोही भावना भड़क उठी।

शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजों ने पाश्चात्य सभ्यता, संस्कृति, भाषा एवं साहित्य के विकास के क्षेत्र में कम्पनी सरकार द्वारा कोई विशेष परिवर्तन न किये जाने के कारण भारतीय बौद्धिक वर्ग अंग्रेजों के विरुद्ध हो गया।

अंग्रेजों द्वारा लगान वसूली एवं विद्रोहों को कुचलने के समय भारतीयों को कठोर शारीरिक दण्ड एवं यातनायें दी गई जिससे उनके अन्दर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ घृणा एवं द्वेष की भावना भर गई।

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

सैनिक असंतोष
बैटिक द्वारा माथे पर तिलक लगाने और पगड़ी पहनने पर रोक

1857 ई. के विद्रोह में सैन्य असंतोष की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। सेना में प्रथम धार्मिक विरोध 1806 में बेल्लौर में तब हुआ था जब बैटिक द्वारा माथे पर तिलक लगाने (APPLYING TILAK) और पगड़ी पहनने (WEARING A TURBAN) पर रोक लगायी गयी।

लार्ड डलहौजी

लार्ड डलहौजी के समय तीन सैनिक विद्रोह हो चुके थे। 1849 ई. में 22वें एन. आई. का विद्रोह, 1850 ई. में 66वें एन. आई. का विद्रोह, 1852 ई. में 38वें एन. आई. का विद्रोह।

वर्मा रेजीमेण्ट

1824 ई. में बैरकपुर में सैनिकों ने समुद्र पार जाने से इंकार कर दिया जिसके कारण वर्मा रेजीमेण्ट को भंग कर दिया गया था।

कैनिंग

1857 ई. में कैनिंग द्वारा पारित सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम (General Service Enlistment Act) के अन्तर्गत सैनिकों को सरकार जहाँ चाहें वहीं कार्य करवा सकती थी।

चर्बीयुक्त एनफील्ड राइफलों के प्रयोग

1854 ई. के डाकघर अधिनियम से सैनिकों की निःशुल्क डाक सुविधा समाप्त हो गयी। सैन्य असंतोष के इसी वातावरण में चर्बीयुक्त एनफील्ड राइफलों के प्रयोग के आदेश ने आग में घी का कार्य किया और सैनिकों के विद्रोह के लिए तात्कालिक कारण भी सिद्ध हुआ।

मंगल पाण्डे

29 मार्च, 1857 को मंगल पाण्डे नामक एक सैनिक ने बैरकपुर छावनी में अपने अफसरों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया, पर ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों ने इस सैनिक को सरलता से नियंत्रित कर लिया (TOOK CONTROL) और साथ ही उसकी बटालियन 34 एन. आई. को भंग कर दिया।

24 अप्रैल को 3 एल. सी. परेड मेरठ में 90 घुड़सवारों में से 85 सैनिकों ने नये कारतूस लेने से इंकार कर दिया। आज्ञा की अवहेलना के कारण इन 85 घुड़सवारों को कोर्ट मार्शल द्वारा 5 वर्ष का कारावास दिया गया।

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

विद्रोहियों ने अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियाँ (BULLETS ON HIS OFFICERS)चलाई

खुला विद्रोह 10 मई दिन रविवार को सायंकाल 5 व 6 बजे के बीच प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम पैदल टुकड़ी ‘ 20 एन. आई.’ में विद्रोह की शुरुआत (BEGINNING OF REBELLION) हुई तत्पश्चात् 3 एल. सी. में भी विद्रोह फैल गया। इन विद्रोहियों ने अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियाँ चलाई। मंगल पाण्डे ने हियरसे को गोली मारी थी जबकि बाग की हत्या कर दी थी।

विद्रोह का प्रसार

मुगल सम्राट बहादुरशाह

11 मई को मेरठ के विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली पहुँचकर 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इन सैनिकों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। शीघ्र ही विद्रोह लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार तथा झाँसी में फैल गया।

जान निकलसन मारा

अंग्रेजों ने पंजाब से सेना बुलाकर सबसे पहले दिल्ली पर अधिकार किया। 21 सितम्बर, 1857 को दिल्ली पर अंग्रेजों । पुनः अधिकार कर लिया परन्तु संघर्ष में जान निकलसन मारा गया

लेफ्टिनेंट हडसन

लेफ्टिनेंट हडसन ने धोखे से बहादुरशाह द्वितीय के दो पुत्रों मिर्जा मुगल और मिर्जा ख्वाजा सुल्तान एवं एक पोते मिज अबूबक्र को गोली मरवा दी।

हेनरी लारेंस

लखनऊ में विद्रोह की शुरुआत 4 जून, 1857 को हुई और यहाँ के विद्रोही सैनिकों द्वारा ब्रिटिश रेजीडेन्सी के घेराव के उपरान्त ब्रिटिश रेजिडेंट हेनरी लारेंस की मृत्यु हो गई।

हैवलाक और आउट्रम

हैवलाक और आउट्रम ने लखनऊ में विद्रोह को दबाने का भरसक प्रयत्न किया परन्तु वे असफल रहे  अन्ततः (कालिन कँपवेल ने गोरखा रेजिमेंट के सहयोग से मार्च, 1858 में शहर पर अधिकार कर लिया। वैसे यहाँ विद्रोह का प्रभाव सितम्बर तक रहा।

नाना साहब

5 जून, 1857 को विद्रोहियों ने कानपुर को अंग्रेजों से छीन लिया। नाना साहब को पेशवा घोषित किया गया। इसका वास्तविक नाम धोंदू पन्त था। तांत्या टोपे ने इनका सहयोग किया। यहाँ पर विद्रोह का प्रभाव 6 सितम्बर तक ही रहा।

तांत्या टोपे

सर कैंपबेल के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना में 6 सितम्बर, 1857 को कानपुर को पुनः अपने कब्जे में कर लिया। तांत्या टोपे कानपुर से फरार होकर झाँसी पहुँच गया।

रानी लक्ष्मी बाई

जून, 1857 में सैनिकों ने झाँसी में विद्रोह कर रानी लक्ष्मी बाई को वहाँ की शासिका घोषित कर दिया।

रानी लक्ष्मीबाई, जो गंगाधर राव की विधवा थी, ने अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को झाँसी की गद्दी न दिए जाने के कारण अंग्रेजों से नाराज थी।

ग्वालियर

तांत्या टोपे के सहयोग से लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों को नाको चने चबवाये। इन दोनों ने ग्वालियर पर भी विद्रोह का झण्डा फहराया और वहाँ के तत्कालीन शासक सिंधिया द्वारा विद्रोह में भाग न लेने पर रानी ने नाना साहब को पेशवा घोषित किया, परन्तु शीघ्र ही अंग्रेजों ने जून, 1858 में ग्वालियर पर अधिकार कर लिया।

भारतीय क्रांतिकारियों में यह अकेली मर्द है

झाँसी पर अंग्रेजी सेना ने ह्यूरोज के नेतृत्व में 3 अप्रैल, 1858 को अधिकार कर लिया। ह्यूरोज ने लक्ष्मीबाई की वीरता से प्रभावित होकर कहा कि ‘भारतीय क्रांतिकारियों में यह अकेली मर्द है।’

बिहार, जगदीशपुर, बनारस

बरेली में खान बहादुर खां ने स्वयं को नवाब घोषित किया। बिहार में जगदीशपुर के जमींदार कुंअर सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का झण्डा फहराया। बनारस में हुए विद्रोह को कर्नल नील ने दबाया। जगदीशपुर के विद्रोह को अंग्रेज अधिकारी विलियम टेलर एवं मेजर विंसेट आयर ने दबाया।

जुलाई, 1858 तक विद्रोह के सभी स्थानों पर विद्रोह को दबा दिया गया। रानी लक्ष्मीबाई एवं तांत्या टोपे ने विद्रोह में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

बर्मा (रंगून)

इलाहाबाद की कमान मौलवी लियाकत अली ने सम्भाली थी। कर्नल नील ने यहाँ के विद्रोहों को समाप्त कर दिया। 20 सितम्बर, 1857 को हुमायूँ के मकबरे में शरण लिए बहादुर शाह को पकड़ लिया गया। उन पर मुकदमा चला तथा उन्हें बर्मा (रंगून) निर्वासित कर दिया गया।

विद्रोह की असफलता के कारण 1857 के विद्रोह की असफलता के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-

विद्रोह स्थानीय, असंगठित एवं सीमित

यह विद्रोह स्थानीय, असंगठित एवं सीमित था। बम्बई एवं मद्रास की सेनायें तथा नर्मदा नदी के दक्षिण राज्यों ने विद्रोह में अंग्रेजों का समर्थन किया।

अंग्रेजों को नेपाल की सहायता बहुत लाभप्रद सिद्ध हुई। अफगानिस्तान का दोस्त मुहम्मद भी मित्रवत बना रहा।

राजस्थान में कोटा एवं अलवर (KOTA AND ALWAR) के अतिरिक्त शेष स्थानों पर विद्रोह का कोई प्रभाव नहीं था।

सिन्ध भी पूर्णतया शान्त था। पंजाब के सिक्ख सरदार, कश्मीर के गुलाब सिंह, ग्वालियर के सिन्धिया और उनके मंत्री दिनकर राव, हैदराबाद के सलार जंग, भोपाल की बेगम, नेपाल का एक मंत्री सर जंगहादुर अंग्रेजों के स्वामी भक्त बने रहे।

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

इसी पर कैनिंग ने टिप्पणी की थी कि “इन शासकों एवं सरदारों ने तरंगरोधकों का कार्य किया अन्यथा इसने हमें एक झोंके में ही बहा दिया होता है।”

अच्छे साधन एवं धनाभाव के कारण भी यह विद्रोह असफल रहा। अंग्रेजी अस्त्र-शस्त्र के समक्ष भारतीय अस्त्र-शस्त्र बौने साबित हुए।

नाना साहब ने तो एक बार कहा था कि “यह नीली टोपी वाली राईफल (BLUE CAP RIFLE) तो गोली चलने से पहले ही मार देती है।”

शिक्षित वर्ग

1857 के इस विद्रोह के प्रति ‘शिक्षित वर्ग’ पूर्ण रूप से उदासीन रहा। व्यापारियों एवं शिक्षित वर्ग ने कलकत्ता एवं बम्बई में सभाएँ कर अंग्रेजों की सफलता के लिए प्रार्थना भी की थी। यदि इस वर्ग ने अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता तो निःसंदेह विद्रोह का परिणाम कुछ और होता।

राष्ट्रीय भावना

इस विद्रोह में ‘राष्ट्रीय भावना'(‘NATIONAL SENTIMENT’) का पूर्णतया अभाव था क्योंकि भारतीय समाज(INDIAN SOCIETY) के सभी वर्गों का सहयोग इस विद्रोह को नहीं मिल सका।

सामन्तवादी वर्गों (IN FEUDAL CLASSES) में एक वर्ग ने विद्रोह में सहयोग किया परन्तु पटियाला, जीन्द, ग्वालियर एवं हैदराबाद (PATIALA, JIND, GWALIOR AND HYDERABAD) के राजाओं ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों का सहयोग किया।

संकट के समय (TIMES OF CRISIS) कैनिंग ने कहा था कि “यदि सिन्धिया भी विद्रोह में सम्मिलित हो जाए (IF SCINDIA ALSO JOINS THE REBELLION) तो मुझे कल ही भारत छोड़ना पड़ेगा।( SO I WILL HAVE TO LEAVE INDIA TOMORROW ITSELF)” विद्रोह दमन के पश्चात् भारतीय राजाओं (INDIAN KINGS) को पुरस्कृत किया गया।

निजाम को बराड़ का प्रान्त लौटा दिया गया और उसके ऋण माफ कर दिये गये। सिन्धिया, गायकवाड़ और राजपूत राजाओं को भी पुरस्कार मिले।

विद्रोहियों में अनुभव, संगठन क्षमता (EXPERIENCE, ORGANIZATIONAL ABILITY) व मिलकर कार्य करने की शक्ति की कमी थी।

INDIA’S FIRST WAR OF INDEPENDENCE

सैनिक दुर्बलता

सैनिक दुर्बलता का विद्रोह की असफलता में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। बहादुरशाह जफर एवं नाना साहब एक कुशल संगठनकर्ता अवश्य थे, पर उनमें सैन्य नेतृत्व की क्षमता की कमी थी, जबकि अंग्रेजी सेना के पास लारेन्स बन्धु, निकलसन, हैवलॉक, आठट्रम एवं एड्वर्ड्स जैसे कुशल सेनानायक थे।

उचित नेतृत्व का अभाव

विद्रोहियों के पास उचित नेतृत्व का अभाव था। वृद्ध मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर विद्रोहियों का उस ढंग से नेतृत्व नहीं कर सका जिस तरह के नेतृत्व की तत्कालीन परिस्थितियों में आवश्यकता थी।

ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव

विद्रोहियों के पास ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव था। उन्हें अगले क्षण क्या करना होगा यह निश्चित न था, वे मात्र भावावेश एवं परिस्थितिवश आगे बढ़े जा रहे थे।

आवागमन एवं संचार के साधनों के उपयोग

आवागमन एवं संचार के साधनों के उपयोग से अंग्रेजों के विद्रोह को दबाने में काफी सहायता मिली और इस प्रकार आवागमन एवं संचार के साधनों ने भी इस विद्रोह को असफल करने में सहयोग दिया।

1857 के विद्रोह के परिणाम

1857 ई. के विद्रोह के दूरगामी परिणाम रहे। इस विद्रोह के प्रमुख परिणाम निम्नवत् हैं-

ईस्ट इंडिया कम्पनी का अस्तित्व समाप्त

विद्रोह के समाप्त होने के बाद 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित कर ईस्ट इंडिया कम्पनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया और अब भारत पर शासन का पूरा अधिकार महारानी के हाथों में आ गया।

1858 ई. के अधिनियम (Act of 1858 AD) के तहत एक भारतीय राज्य सचिव(INDIAN SECRETARY OF STATE’) की व्यवस्था की गयी

इंग्लैण्ड में 1858 ई. के अधिनियम के तहत एक भारतीय राज्य सचिव’ (INDIAN SECRETARY OF STATE’) की व्यवस्था की गयी, जिसकी सहायता के लिए पन्द्रह(15) सदस्यों की एक ‘मंत्रणा परिषद्'(‘ADVISORY COUNCIL’) बनाई गयी। इन पन्द्रह (15) सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा करने तथा साथ (7) की कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई।

भारतीय नरेशों को विक्टोरिया ने अपनी ओर से समस्त संधियों के पालन करने का आश्वासन दिया

स्थानीय लोगों को उनके गौरव एवं अधिकारों को पुनः वापस करने की बात कही गयी। भारतीय नरेशों को विक्टोरिया ने अपनी ओर से समस्त संधियों के पालन करने का आश्वासन दिया लेकिन साथ ही नरेशों (MONARCHS) से भी उसी प्रकार के पालन की आशा (HOPE TO FOLLOW) की।

धार्मिक शोषण खत्म(END RELIGIOUS EXPLOITATION) करने एवं सेवाओं में बिना भेदभाव (DISCRIMINATION) के नियुक्ति

अपने राज्य क्षेत्र के विस्तार की अनिच्छा(RELUCTANCE) की अभिव्यक्ति(EXPRESSION) के साथ-साथ उन्होंने अपने राज्य क्षेत्र अथवा अधिकारों का अतिक्रमण (ENCROACHMENT) सहन न करने तथा दूसरों पर अतिक्रमण न करने की बात कही और साथ ही धार्मिक शोषण खत्म करने एवं सेवाओं में बिना भेदभाव (DISCRIMINATION) के नियुक्ति की बात की गयी।

सैन्य पुनर्गठन

 सैन्य पुनर्गठन के आधार पर यूरोपीय सैनिकों की संख्या को बढ़ाया गया। उच्च सैनिक पदों पर भारतीयों को नियुक्ति को बंद कर दिया गया।

तोपखाने पर पूर्णरूप से अंग्रेजी सेना का अधिकार हो गया। अब बंगाल प्रेसीडेन्सी के लिए सेना में भारतीय और अंग्रेज सैनिकों का अनुपात 21 का हो गया जबकि मद्रास और बम्बई प्रेसीडेन्सियों में यह अनुपात 31 का हो गया। उच्च जाति के लोगों में से सैनिकों की भर्ती बंद कर दी गयी।

वायसराय

1858 के अधिनियम (ACT OF 1858) के अन्तर्गत ही भारत में गवर्नर जनरल(Governor General) के पदनाम में परिवर्तन कर उसे ‘वायसराय'(VICEROY) का पदनाम दिया गया।

सामंतवादी ढाँचा चरमरा गया

विद्रोह के फलस्वरूप सामंतवादी ढाँचा(FEUDAL STRUCTURE) चरमरा गया। आम भारतीयों में सामंतवादियों की छवि गद्दारों(TRAITORS) की हो गई, क्योंकि इस वर्ग ने विद्रोह को दबाने में (SUPPRESSING REBELLION) अंग्रेजों को सहयोग दिया था।

भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना (FEELING OF NATIONAL UNITY) का विकास हुआ

विद्रोह के परिणामस्वरूप भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना(FEELING OF NATIONAL UNITY) का विकास हुआ और हिन्दू-मुस्लिम एकता (HINDU-MUSLIM UNITY) ने जोर पकड़ना शुरू किया, जिसका कालान्तर में राष्ट्रीय आंदोलन (NATIONAL MOVEMENT) में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

आर्थिक शोषण के युग का आरम्भ

1857 के विद्रोह के बाद साम्राज्य विस्तार की नीति का तो खात्मा हो गया, परन्तु इसके स्थान पर अब आर्थिक शोषण के युग का आरम्भ हुआ।

1861 ई. में भारतीय परिषद् अधिनियम

भारतीयों के प्रशासन में प्रतिनिधित्व (REPRESENTATION OF INDIANS IN ADMINISTRATION) के क्षेत्र में अल्प प्रयास के अन्तर्गत 1861 ई. में भारतीय परिषद् अधिनियम (INDIAN COUNCIL ACT) को पारित किया गया।

श्वेत जाति की उच्चता के सिद्धान्त (WHITE SUPREMACY THEORY) का प्रतिपादन

इसके अतिरिक्त ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में कमी, श्वेत जाति की उच्चता के सिद्धान्त का प्रतिपादन और मुगल साम्राज्य के अस्तित्व का खत्म होना आदि 1857 के विद्रोह के अन्य परिणाम थे।

Read More

यह भी पढे़:- शिवाजी

यह भी पढे़:- राव चंद्रसेन

यह भी पढे़:- महाराणा सांगा

यह भी पढे़:- महाराणा कुम्भा

यह भी पढे़:- महाराणा प्रताप

यह भी पढे़:- हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.)

यह भी पढे़:- बावड़ी

यह भी पढे़:- प्रकाश

यह भी पढे़:- पृष्ठ तनाव और श्यानता

यह भी पढे़:- सामान्य विज्ञान अध्ययन

यह भी पढे़:- ऊष्मा

यह भी पढे़:- उत्प्लावकता एवं आर्किमिडीज नियम

यह भी पढे़:- बल और गति

यह भी पढे़:- विद्युत का दैनिक जीवन में उपयोग

यह भी पढे़:- विद्युत चुम्बकीय प्रेरण

यह भी पढे़:- बिजली

यह भी पढे़:- मूल राशियाँ एवं मात्रक

यह भी पढे़:- नाडौल के चौहान

यह भी पढे़:- आमेर का कच्छवाहा राजवंश

यह भी पढे़:- भीनमाल (जालौर) के प्रतिहार

यह भी पढे़:- मण्डौर के प्रतिहार 

यह भी पढे़:- गुर्जर प्रतिहार वंश

यह भी पढे़:- अलवर की रियासत

यह भी पढे़:- भरतपुर राज्य का जाट वंश

यह भी पढे़:- राजस्थान में प्राचीन सभ्यताओं के पुरातात्विक स्थल

यह भी पढे़:- सिरोही के चौहान

यह भी पढे़:- रणथम्भौर के चौहान

यह भी पढे़:- पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान)

यह भी पढे़:- राजस्थान में चौहानों का इतिहास

यह भी पढे़:- जालौर के चौहान

यह भी पढे़:- राजस्थान में चौहानों का इतिहास-2

यह भी पढे़:- बापा रावल

यह भी पढे़:- राजस्थान की प्राचीन सभ्यता के स्थल

यह भी पढे़:- हाड़ौती के चौहान

यह भी पढे़:- राजस्थान में संग्रहालय

यह भी पढे़:- राजस्थान के किले

यह भी पढे़:- बावड़ी झील एवं बाग

यह भी पढे़:- राजस्थान का सामान्य ज्ञान

यह भी पढे़:- राजस्थान का इतिहास

यह भी पढे़:- वैदिक साहित्य

यह भी पढे़:- सिन्धु घाटी सभ्यता

यह भी पढे़:- वैदिक सभ्यता

यह भी पढे़:- सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल

यह भी पढे़:- भारत में नोबेल पुरस्कार विजेता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *