HYDER ALI

HYDER ALI हैदरअली

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हैदरअली

हैदरअली का जन्म 1721 ई. में मैसूर प्रान्त के कोलार जिले के बूदिकोट नामक स्थान पर हुआ था। हैदर के पिता फतेह मुहम्मद उच्च कोटि के सेनानायक थे। प्रारम्भ में मैसूर एक स्वतन्त्र राज्य न होकर विजयनगर साम्राज्य का एक अंग था।

साम्राज्य का विघटन होने पर यह एक स्वतन्त्र राज्य के रूप में प्रकट हुआ। 1704 ई. में यह मुगल साम्राज्य के अधीन हो गया। 1708 ई. में मुगल सम्राट के आदेश पर मराठे मैसूर राज्य से चौथ वसूल करने के अधिकारी बने।

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अठारहवीं शताब्दी के मध्य में मैसूर पर चिक कृष्णराज का शासन था, परन्तु वह अयोग्य था। इसी समय सत्ता की दुर्बलता के कारण नन्दराज मैसूर का शासक बन बैठा।

इसी नन्दराज की सेना में हैदरअली नायक के पद पर कार्यरत था। सैनिक प्रतिभा हैदर को अपने पिता से उत्तराधिकारी में प्राप्त हुई थी। अपने गुणों से हैदरअली ने मैसूर राज्य के प्रधानमन्त्री नेजराज को काफी प्रभावित किया।

नेजराज ने 1755 ई. में हैदरअली को डिंडिंगल का फौजदार नियुक्त कर दिया। फौजदार बनते ही हैदर के भाग्य का सितारा चमक उठा।

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मैसूर का शासक बनना

मैसूर का हिन्दू राजा नाममात्र का शासक था । वास्तविक शासन सत्ता नेजराज के हाथ में थी। अतः महत्त्वाकांक्षी होने के कारण हैदरअली मैसूर का शासक बनने की सोचने लगा।

दक्षिण में इस समय अशान्ति और अस्थिरता का वातावरण था, क्योंकि कर्नाटक में युद्ध चल रहे थे।

परिस्थिति का लाभ उठाकर 1760 ई. में हैदरअली ने मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टम पर आक्रमण करके प्रधानमन्त्री नेजराज को बन्दी बना लिया और स्वयं मैसूर के राजा का संरक्षक बन बैठा।

धीरे-धीरे विरोधियों को अपने पक्ष में करके हैदरअली मैसूर का वास्तविक शासक बन बैठा।

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हैदरअली द्वारा साम्राज्य विस्तार

हैदरअली ने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनायी। उसने अनेक सीमावर्ती क्षेत्रों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया। हैदर अली ने बेदनूर नगर की आन्तरिक कलह की स्थिति का लाभ उठाकर उसे अपने साम्राज्य में मिला लिया।

इसके उपरान्त हैदरअली ने दक्षिण कन्नड़, कालीकट, कोचीन, पालघाट आदि के शासकों को पराजित कर इन क्षेत्रों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।

हैदरअली अंग्रेजों को भी भारत से भगाने की आकाँक्षा रखता था, इसलिए इनके विरुद्ध इसने मराठों से सन्धि कर ली। मराठा राजनीतिज्ञ नाना फड़नवीस से इसके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गये।

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हैदरअली का अंग्रेजों के साथ संघर्ष

हैदरअली के बढ़ते हुए प्रभाव से अंग्रेज भी चिन्तित थे। अतः वे उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगे। उधर मराठों की हैदर से सन्धि (1765 ई.) हो जाने के बाद भी मराठे और निजाम उससे भयभीत थे।

अत: 1766 ई. में अंग्रेजों ने मराठों और निजाम से मिलकर हैदर अली के विरुद्ध एक शक्तिशाली संघ (संयुक्त मोर्चा) बनाया।

परन्तु हैदरअली ने अपने चातुर्यबल से निजाम और मराठों को अपनी ओर मिलाकर शक्तिशाली संघ को छिन्न- भिन्न कर दिया। अब उसे केवल अंग्रेजों से लोहा लेना था।

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प्रथम मैसूर युद्ध (1767-1769 ई.)

युद्ध के कारण

1767 से 1769 ई. के बीच हुए प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध के निम्नलिखित कारण थे-

(1) हैदरअली और अंग्रेज दोनों ही अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि के लिए प्रयासरत थे, हैदरअली की बढ़ती हुई शक्ति अंग्रेजों के लिए खतरे का संकेत थी

(2) अंग्रेजों ने हैदरअली के विरुद्ध षड्यन्त्र रचे थे, अतः हैदरअली इस कारण  अंग्रेजों से खिन्न था।

(3)हैदरअली फ्रांसीसियों की ओर अधिक आकर्षित था। जबकि फ्रांसीसी  अंग्रेजों के कट्टर शत्रु थे

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प्रथम मैसूर युद्ध

उपर्युक्त कारणों के फलस्वरूप 1767 ई. में अंग्रेज और हैदरअली के मध्य युद्ध छिड़ गया। प्रारम्भ में युद्ध में अंग्रेजों को कुछ सफलताएँ मिलीं।

परन्तु शीघ्र ही हैदरअली की सेनाओं ने अंग्रेजों को चारों ओर से घेर लिया और अंग्रेजों को पराजित कर मंगलौर पर अधिकार कर लिया।

इसके बाद उसकी सेनाएँ मद्रास (चेन्नई) तक पहुँच गई। उसने मद्रास को तीन ओर से घेर लिया और मद्रास पर भीषण आक्रमण किया, इस युद्ध में अंग्रेजों की बहुत क्षति हुई।

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हैदरअली की विस्तारवादी आक्रामक नीति से अंग्रेज भयभीत हो गये। अतः उन्होंने 4 अप्रैल, 1769 ई. को हैदरअली से मद्रास की सन्धि कर ली जिसके अनुसार दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के प्रदेश लौटा दिये। अंग्रेजों ने युद्ध-हर्जाने के रूप में हैदरअली को बहुत-सा धन दिया। और दोनों पक्षों ने भविष्य में एक-दूसरे को सहायता देने के वचन दिया।

द्वितीय मैसूर युद्ध (1780 1784 ई.)

युद्ध के कारण – 1780 से 1784 ई. के बीच हुए द्वितीय मैसूर युद्ध के निम्नलिखित कारण थे-

अंग्रेजों द्वारा विश्वासघात

1769 ई. की मद्रास की सन्धि में अंग्रेजों ने सहायता हेतु दिये वचन का उस समय उल्लंघन किया जब 1770 ई. में मराठों (Marathas) ने हैदर अली  पर आक्रमण किया।

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अंग्रेजों द्वारा माही पर अधिकार

1778 ई. में छिड़े अमेरिकी स्वतन्त्रता- संग्राम के दौरान इंग्लैण्ड व फ्रांस भी परस्पर युद्धरत हो गए। अंग्रेजों ने पॉण्डिचेरी व मछलीपट्टम विजय करने के बाद 19 मार्च, 1779 ई. को हैदर के विरोध की उपेक्षा करते हुए फ्रांसीसियों से माही छिन लिया।

गुण्टूर का प्रश्न

 गुन्टूर निजाम के भाई बलासत जंग की जागीर में था। वह फ्रांसीसियों से मिला हुआ था, अतः अंग्रेजों ने 1778 ई. में गुण्टूर अपने संरक्षण में ले लिया, इससे हैदर अंग्रेजों से नाराज हो गया।

हैदर व फ्रांसीसियों की मैत्री

हैदर फ्रांसीसियों से युद्ध-सामग्री खरीदता था। इससे अंग्रेज उसके शत्रु बन गए ।

त्रिगुट संघ का निर्माण

हैदरअली, हैदराबाद के निजाम तथा मराठे तीनों ही अंग्रेजों से रुष्ट थे। तीनों ने मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध 1779 ई. में त्रिगुट संघ का निर्माण कर लिया था।

द्वितीय मैसूर युद्ध

सन् 1780 ई. में हैदरअली की विशाल सेना ने अंग्रेजों के मित्र कर्नाटक के नवाब पर आक्रमण किया। हैदरअली की विजय हुई और उसने कर्नाटक की राजधानी अर्काट पर अधिकार कर लिया।

तब वारेन हेस्टिंग्ज ने सर आयरकूट के नेतृत्त्व में एक अंग्रेजी सेना भेजी, जिसने 1781 ई. में पोर्टीनोवो के युद्ध में हैदरअली को पराजित किया। लेकिन इस युद्ध में अंग्रेजों को बहुत क्षति हुई। दूसरी ओर कर्नल ब्रेथवेट की सेना को हैदरअली ने पराजित कर दिया।

वारेन हेस्टिंग्ज ने अब कूटनीति का सहारा लेकर मराठों के साथ सालबाई की सन्धि कर ली और निजाम को गुण्टूर का प्रदेश दे दिया, जिससे दोनों ने हैदरअली को सहायता देना बन्द कर दिया।

दोनों पक्षों में संघर्ष चलता रहा, लेकिन इसी बीच 6 दिसम्बर, 1782 ई. में हैदरअली की मृत्यु हो गयी।

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हैदरअली की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र टीपू ने संघर्ष जारी रखा और 1783 ई. में बेडनोर पर अधिकार कर लिया। जब वह समुद्री तटवर्ती मंगलौर पर घेरा डालने के लिए आगे बढ़ रहा था, तो अंग्रेजों ने दक्षिण-पश्चिम की ओर से मैसूर पर आक्रमण कर दिया।

नवम्बर, 1783 ई. में अंग्रेजों ने पालघाट (PALGHAT) और कोयम्बटूर पर अधिकार कर लिया। और अन्त में मार्च, 1784 ई. में अंग्रेजों और टीपू के बीच मंगलौर की सन्धि हो गई। मंगलौर की सन्धि की शर्तें

(1) अंग्रेजों ने व टीपू सुल्तान (दोनों ने) एक दूसरे के जीते हुए प्रदेश (TERRITORY) लौटाने का वचन दिया।

(2) दोनों पक्ष युद्ध-बन्दियों को रिहा करेंगे।

(3) मैसूर राज्य में अंग्रेजों के व्यापारिक अधिकार (TRADING RIGHTS) को टीपू सुल्तान ने माना ।

(4) अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को आश्वासन (AASHVAASAN) दिया कि वे मैसूर राज्य के साथ मित्रता बनाये रखेंगे और  संकट काल में उसकी मदद करेंगे।

मद्रास की सन्धि के समान यह सन्धि भी स्थायी सिद्ध न हुई। यह निश्चित था कि दोनों पक्ष एक-दूसरे की शक्ति को नष्ट करने के लिए फिर संघर्ष करेंगे।अतएव वे सन्धि के बाद से ही युद्ध की तैयारियाँ करने लगे 

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हैदरअली का चरित्र और मूल्यांकन

मैसूर राज्य के इतिहास में हैदरअली का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह अपने भाग्य का निर्माता स्वयं था। एक साधारण कर्मचारी के घर जन्म लेकर अपनी बुद्धि, बल और सैन्य कौशल से मैसूर राज्य का स्वामी बनने में सफलता प्राप्त की।

संक्षेप में हैदरअली के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं-

महान् शासक तथा सेनापति

हैदरअली एक महान शासक और कुशल सेनापति था।

उसने लगातार युद्धों में व्यस्त रहने पर भी राज्य की अव्यवस्था दूर करके शान्ति तथा सुव्यवस्था स्थापित की तथा प्रजा को सुखी-समृद्ध बनाने का अथक  परिश्रम किया  उसने अपनी सेना को यूरोपीय युद्ध-प्रणाली का प्रशिक्षण देकर छापामार पद्धति का समन्वय किया।

उसने एक शक्तिशाली समुद्री जहाजी बेड़े का भी निर्माण किया था।

कुशल राजनीतिज्ञ

हैदरअली एक कुशल कूटनीतिज्ञ था उसने कूटनीति द्वारा ही मैसूर की शासन सत्ता पर अधिकार किया। अपनी कुशल कूटनीति द्वारा ही शक्तिशाली शत्रुओं को पृथक्-पृथक् रख सका।

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कुशाग्र बुद्धि

यद्यपि हैदरअली पढ़ा-लिखा नहीं था, किन्तु उसकी बुद्धि बहुत ही कुशाग्र तथा स्मरण शक्ति अच्छी थी। वह एक समय में कई बातों पर एक साथ ध्यान दे सकता था।

वह प्रातःकाल अपने सभी गुप्तचरों से एक साथ उनकी खबरें सुनता था और आवश्यकतानुसार सभी को आदेश देता था।

उच्च कोटि का पारखी

हैदरअली मनुष्य के गुणों को परखने की अद्भुतशक्ति रखता था । उसने अपने जीवन में कभी अयोग्य व्यक्तियों को प्रोत्साहन नहीं दिया।

धर्म-सहिष्णु

हैदरअली धर्म सहिष्णु था। धार्मिक दृष्टि से वह अत्यन्त उदार था। उसने सभी धर्मों को आदर-सम्मान दिया । हिन्दुओं को उसके राज्य में पूर्ण सुरक्षा थी। वह हिन्दू विद्वानों तथा मन्दिरों को दान देता था ।

उसने मैसूर की चामुण्डेश्वरी देवी के मन्दिर को दान दिया था। उसने अपनी मुद्राओं पर पार्वती तथा विष्णु की मूर्तियाँ अंकित करायी थीं।

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विभिन्न भाषाओं का ज्ञाता

निरक्षर होते हुए भी हैदरअली असाधारण प्रतिभा का धनी था। वह पाँच भाषाओं का ज्ञाता था । वह हिन्दी, मराठी, तेलगू, तमिल तथा कन्नड़ भाषाओं को अच्छी तरह बोल सकता था।

न्यायप्रिय शासक

हैदरअली एक निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासक होते हुए भी बड़ा न्यायप्रिय शासक था। वह सभी के साथ उचित एवं निष्पक्ष न्याय करता था । उसके शासनकाल में कर्मचारी अनुशासित थे।

साम्राज्यवादी

हैदरअली साम्राज्यवादी शासक था। उसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसे स्थायी एवं सुदृढ़ बनाया। सरकार और दत्ता ने उसके विषय में लिखा है, “अपनी योग्यता से स्वयं को बनाने वाले हैदरअली ने मैसूर राज्य को दुर्बल और विभाजित पाया,

परन्तु उसने उसे 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत की एक सर्वश्रेष्ठ शक्ति बना दिया और हैदरअली ना तो एक लुटेरों का सरदार था और ना ही  एक स्वार्थी अवसरवादी सैनिक (SELFISH OPPORTUNISTIC SOLDIER) था

परन्तु साहसपूर्ण सैनिक (BRAVE SOLDIER) प्रतिभा के साथ-साथ उसमें एक कुशल राजनीतिज्ञ (SKILLFUL POLITICIAN) की भी योग्यता थी।”

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