Gurjar Pratihar dynasty
Gurjar Pratihar dynasty
आइये आज हम गुर्जर प्रतिहार वंश के बारे में अध्ययन करेंगे
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गुर्जर प्रतिहार वंश(Gurjar Pratihar dynasty) अग्निकुण्ड से उत्पन्न चार वंशों
परमार
प्रतिहार
चालुक्य
चौहान में शामिल है।
अग्निकुल के राजकुलों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहार वंश जो गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार कहलाये।
चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख अभिलेखिक रूप में सर्वप्रथम हुआ है।
गुर्जर प्रतिहारों ने छठीं शताब्दी से बारहवीं सदी तक विदेशियों के आक्रमण के संकट के समय भारत के द्वारपाल की भूमिका निभायी।
प्रतिहार वंश का महत्व
प्राचीन भारतीय इतिहास में गुर्जर प्रतिहार वंश का बड़ा महत्व है राजा हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तरी भारत की जो राजनीतिक एकता छिन्न भिन्न हो गई थी उसे पुनः स्थापित करने के लिये गुर्जर प्रतिहार वंश ने सफल प्रयत्न किया इसके प्रतापी नरेशों ने उत्तरी भारत के अधिकांश भाग को बहुत समय तक अपने अधीन रखा यही नहीं दीर्घकाल तक इसने सिन्ध प्रदेश से आगे बढ़ती हुई मुस्लिम शक्ति को रोके रखा उत्तरी भारत में उसका विस्तार न होने दिया प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चन्द्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों ने छठीं सदी से बारहवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों को रोके रहा।
महान् विजेता होने के साथ-साथ प्रतिहार नरेश महान् साहित्य प्रेमी कला-प्रेमी और धर्मालु शासक थे प्रमाण स्वरूप इनके शासन काल में भारतीय संस्कृति की बड़ी उन्नति हुई।
Gurjar Pratihar dynasty
उत्पत्ति
छठीं शताब्दी के द्वितीय चरण में उत्तर पश्चिमी भारत में एक नये राजवंश की स्थापना हुई जो गुर्जर प्रतिहार वंश कहलाया।
नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है स्कन्ध पुराण में पाँच द्रविडों में गुर्जरों का उल्लेख मिलता है।
नागभट्ट को राम का प्रतिहार एवं विशुद्ध क्षत्रिय कहा गया है, मिहिरभोज के ग्वालियर अभिलेख (Gwalior Inscription) में।
विद्धशाल भंजिका
राजशेखर ने अपने ग्रन्थ विद्धशाल भंजिका में गुर्जर प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल को रघुकुल तिलक व रघुकुल चुडामणि तथा महिपाल प्रथम को रघुवंश मुकुटमणि तथा रघुकुल मुक्तामणि कहा है।
हवेनसांग
चीनी यात्री हवेनसांग ने अपने वर्णन में 72 देशों का उल्लेख किया है जब वह भीनमाल आया तो उसने 72 देशों में एक कू-चेलो (गुर्जर) बताया तथा उसकी राजधानी का नाम पीलोमोलो / भीलामाला (भीनमाल) बताया।
प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के विषय में बड़ा मतभेद है इस संबंध में निम्नलिखित मत दिए जाते है।
डॉ. बी. ए. स्मिथ एवं स्टेनफोनो इन्हें श्रीमाल / भीनमाल का मानते है।
स्टेनफोनो भी इन्हें श्रीमाल / भीनमाल का मानते है।
भगवान लाल इन्द्रजी ने गुर्जरों को कुषाणों के समय बाहरी प्रदेश से आया हुआ माना है।
बम्बई गजेटियर में भी गुर्जरों को विदेशी माना है गुर्जरात्रा में बसने के कारण गुर्जर माना है।
डॉ. ओझा गुर्जरों को देशी क्षत्रिय मानते है ।
Gurjar Pratihar dynasty
प्रतिहारों का मूल निवास स्थान
प्रतिहार राजाओं के जोधपुर घटियाला शिलालेखों से प्रकट होता है कि गुर्जर प्रतिहारों कामूल निवास स्थान गुर्जरात्र (राजपूताना का एक भाग) था।
एच. सी. रे का विचार है कि गुर्जर प्रतिहारों की सत्ता का प्रारम्भ केन्द्र माण्डवैपुरा (मण्डौर) था जो राजस्थान में है।
परन्तु अधिकांश विधवानों के मतानुसार गुर्जर प्रतिहारों की सत्ता का प्रारम्भिक केन्द्र अवन्ति अथवा उज्जैन था।
जैन ग्रन्थ हरिवंश प्रतिहार नरेश वत्सराज को अन्ति भूभृत (अवन्ति का राजा) कहता है ।
राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष के संजन ताम्रपत्र का कथन है कि उसके एक पूर्वज तन्तदुर्ग
(दन्तिदुर्ग) ने एक महादान यज्ञ किया था।
उस अवसर पर अमोघवर्ष ने गुर्जर राज्य को उज्जैन में प्रतिहार (द्वारपाल) बनाया था ।
इस उल्लेख के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि गुर्जर प्रतिहार उज्जैन अथवा अवन्ति के शासक थे।
नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारों के 26 शाखाओं का वर्णन किया है जिनमें मण्डौर, जालौर, राजौरगढ़, कन्नौज, उज्जैन, और भाड़ौच के गुर्जर प्रतिहार बड़े प्रसिद्ध रहे।

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