राजस्थान के किले Fort Of Rajasthan
राजस्थान में लगभग 250 से अधिक दुर्ग व गढ़ है। सम्पूर्ण देश में राजस्थान वह प्रदेश है, जहाँ पर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के बाद सर्वाधिक गढ़ और दुर्ग बने हुए हैं। भारत में महाराष्ट्र एवं राजस्थान में पग-पग पर दुर्ग मिलते हैं।
यहाँ राजाओं, सामन्तों ने अपने निवास के लिए, सुरक्षा के लिए सामग्री संग्रहण के लिए, आक्रमण के समय अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने के लिए, पशु- धन बचाने के लिए और संपत्ति को छिपाने के लिए दुर्ग बनवाये गए थे।
दुर्ग निर्माण में सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया। दुर्ग वहां बनाये जाने लगे जहाँ ऊँची-ऊँची पहाड़ियां हो तथा जो ऊपर से चौरस हो। पहाड़ी के ऊपरी चौरस भाग को सुदृढ़ दीवारों से घेरा गया। यहाँ खेती योग्य भूमि एवं सिंचाई के साधनों का समुचित प्रबंध किया गया।
राजपूत शासकों ने पहाड़ियों से नीचे आकर समतल मैदान में नगर दुर्गों का निर्माण करवाया जैसे- जयपुर, बीकानेर, भरतपुर आदि।
Fort Of Rajasthan
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यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में राजस्थान के दुर्ग शामिल
राजस्थान के 6 प्रमुख दुर्गों को जून 2013 में नोमपेन्ह में हुई वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की बैठक में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल किया गया।
- आमेर महल
- गागरोण
- कुंभलगढ़
- जैसलमेर
- रणथंभौर
- चित्तौड़गढ़
दुर्गों की प्रमुख विशेषताएँ थी
1. सुदृढ़ प्राचीरें
2. विशाल परकोटा
3. अभेद्य बुर्जें
4. दुर्ग के चारों और गहरी नहर या खाई
5. दुर्ग के भीतर शास्त्रागार की व्यवस्था
6. जलाशय
7. मन्दिर निर्माण
8 पानी की टंकी की व्यवस्था
9. अन्नभण्डार की स्थापना
10. गुप्तप्रवेश द्वार रखा जाना
11. सुरंग निर्माण
12. राजप्रासाद एवं सैनिक विश्राम गृहों की व्यवस्था आदि।
दुर्गों के प्रकार दुर्ग निर्माण में राजस्थान के शासकों ने भारतीय दुर्ग निर्माण कला की परम्परा का निर्वाह किया था। अलग-अलग उद्देश्यों के लिए विभिन्न प्रकार के दुर्गों का निर्माण किया जाता था।
Fort Of Rajasthan
दुर्गों की चार प्रमुख कोटियां कौटिल्य ने बताई हैं
- औदुक दुर्ग
- पार्वत दुर्ग
- धान्व दुर्ग
- वन दुर्ग
शुक्र नीति में राज्य के सात अंग बताये हैं
- राजा
- मंत्री
- सुहृत्
- कोष
- राष्ट्र
- दुर्ग
- सेना
अर्थात् इन सात चीजों के होने पर ही कोई राजा हो सकता है।
Fort Of Rajasthan
शुक्र नीति में नौ तरह के दुर्ग बताये गये हैं।
- एरण दुर्ग
- पारिख दुर्ग
- पारिध दुर्ग
- वन दुर्ग
- धान्वन दुर्ग
- जल दुर्ग
- गिरि दुर्ग
- सैन्य दुर्ग
- सहाय दुर्ग
राजस्थान में ऊपर बताए गये सभी प्रकार के दुर्ग पाये जाते हैं।
Fort Of Rajasthan
राजस्थान में स्थित दुर्गों का विवरण
एरण दुर्ग
एरण दुर्ग की गिनती में वे दुर्ग आते हैं जिनके मार्ग खाई, कांटों व पत्थरों से दुर्गम हों। राजस्थान में अनेक दुर्ग इस श्रेणी में आते हैं। इनमें चित्तौड़ व जालौर के दुर्ग प्रमुख हैं।
पारिख दुर्ग
पारिख दुर्ग वह होता है जिसके चारों ओर बहुत बड़ी खाई हो। भरतपुर दुर्ग तथा बीकानेर का जूनागढ़ इसी श्रेणी के दुर्ग हैं।
पारिध दुर्ग
पारिध दुर्ग जिन दुर्गों के चारों ओर बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो वे पारिध दुर्ग कहलाते हैं। इस श्रेणी में चित्तौड़, जालौर, बीकानेर, जैसलमेर आदि दुर्ग आते है।
वन दुर्ग
वन दुर्ग सघन बीहड़ वन में बना हुआ दुर्ग वन दुर्ग कहलाता है। सिवाना का दुर्ग इसी श्रेणी में आता था। मेवास कहे जाने वाले – दुर्ग वन दुर्ग ही हैं। बीकानेर का जूनागढ़, नागौर का अहिच्छत्रगढ़, चौमूं का चौमुहागढ़ (या धाराधार गढ़) तथा माधोराजपुरा का दुर्ग स्थल दुर्गों की श्रेणी में आते हैं।
धान्वन दुर्ग
धान्वन दुर्ग मरुभूमि में बना हुआ दुर्ग धान्वन दुर्ग कहलाता है। जैसलमेर का दुर्ग एक उत्तम कोटि का धान्वन दुर्ग है।
औदुक दुर्ग
औदुक दुर्ग का अर्थ है जल दुर्ग, ऐसा दुर्ग जो विशाल जल राशि से घिरा हुआ हो जैसे गागरोन इसी प्रकार का दुर्ग है।
गिरि (पर्वत) दुर्गं
गिरि (पर्वत) दुर्गं किसी उच्च गिरि पर स्थित होता है। जालौर दुर्ग, सिवाना दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग, रणथंभौर का दुर्ग, अजमेर का तारागढ़, जोधपुर का मेहरानगढ़, आमेर का जयगढ़, दौसा तथा कुचामन के दुर्ग इसी प्रकार के अजेय पर्वत दुर्ग है।
सैन्य दुर्ग
सैन्य दुर्ग उसे कहते हैं जिसमें युद्ध की व्यूह रचना में चतुर सैनिक रहते हों। चित्तौड़ सहित अन्य सभी दुर्ग इसी श्रेणी में आते हैं।
सहाय दुर्ग
सहाय दुर्ग उसे कहते है जिसमें शूरवीर एवं साथ देने वाले बांधव लोग रहते हों। जालौर के राजा कान्हड़दे के काल में सिवाना का दुर्ग उसके भतीजे सातलदेव के अधिकार में था। चित्तौड़, जालौर तथा सिवाना के दुर्ग सहाय दुर्ग की श्रेणी में आते हैं। हनुमानगढ़ का भटनेर दुर्ग तथा भरतपुर का लोहागढ़ मृत्तिका से बने हुए हैं।