Bapa Rawal बापा रावल
Bapa Rawal
बापा रावल
आइये आज हम बापा रावल के बारे में अध्ययन करेंगे बापा रावल गुहिलवंशी राजानागादित्य के पुत्र थे इनकी माता का नाम कमलावती था। इनकी तीन वर्ष की आयु में ही इनके पिता की हत्या होने के कारण इनको ब्राह्मणों की गायें चरानी पड़ीं ।
ऐसी मान्यता है कि बापा रावल हारीत ऋषि की गायें चराता था। हारीत ऋषि की कृपा से ही बापा रावल ने मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया था। बप्पा रावल के बाद इसके वंशजों ने मेवाड़ पर तेरह सौ वर्षो तक अधिकार रहा(राज्य किया) जो भारत में सबसे अधिक जीवित राजवंश के नाम से जाना जाता है
बापा रावल का मूलनाम/प्रथमनाम कालभोज था परन्तु बापा इसका प्रसिद्ध नाम था एवं ‘रावल’ इसका विरुद (उपाधि) था।
बप्पा रावल हारीत ऋषि की गायें चराने के बाद चित्तौड़ के शासक मान मोरी की सेवा में चला गया। इसी समय विदेशी मुस्लिम सेना ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया।
राजा मान ने अपने सामन्तों को विदेशी सेना(मुस्लिम सेना) का मुकाबला करने के लिए कहा किन्तु चित्तौड़ के शासक मान मोरी के सामन्तों ने इंकार कर दिया। अंत में बप्पा रावल ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए युद्ध के लिए प्रस्थान किया।
बप्पा रावल के अद्भुत पराक्रम के सामने विदेशी आक्रमणकारी(मुस्लिम सेना) टिक नहीं पाये और सिंध की तरफ भाग निकले।
बप्पा ने चित्तौड़ पर अधिकार कर तीन उपाधियाँ- ‘’हिन्दू सूर्य’’, ‘’राजगुरु’’ और ‘’चक्कवै’’ धारण की । इतिहासकार डॉ.जी.एच.ओझा के अनुसार बापा इसका नाम न होकर कालभोज की उपाधि थी।
बापा रावल के राज्य पाने का समय इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने विक्रम संवत 770 माना है। कविराजा श्यामलदास ने “वीर विनोद” में बापा रावल द्वारा मौर्यो से चित्तौड़ दुर्ग छीनने का समय 734 ई. बताया है। इस समय गुहिलों की राजवंश की राजधानी नागदा थी।
इतिहासकार सी. वी. वैद्य ने बापा रावल की तुलना ,,चार्ल्स मार्टेल,, (मुगल सेनाओं को सर्वप्रथम पराजित करने वाला फ्रांसीसी सेनापति) के साथ करते हुए कहा है कि उसकी शौर्य की चट्टान के सामने अरब आक्रमण का ज्वार-भाटा टकराकर चूर-चूर हो गया।
बप्पा रावल के समय के प्राप्त तांबे एवं सोने के सिक्के मिले हैं जिनमें सोने का सिक्का 115 ग्रेन का है। बापा रावल हारीत ऋषि का शिष्य एवं पाशुपत संप्रदाय का अनुयायी था।
बापा का देहान्त नागदा में हुआ था। बापा का समाधि स्थल एकलिंगजी (कैलाशपुरी) मंदिर से एक मील दूरी पर अभी भी मौजूद है जो ,बापा रावल, के नाम से प्रसिद्ध है। बप्पा रावल ने जिस स्थान को अपना सैन्य ठिकाना बनाया व स्थान वर्तमान में पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी के नाम से जाना जाता है।
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इतिहासकार डॉ.जी.एच.ओझा ने बप्पा रावल को एक विशाल राज्य का स्वामी, स्वतंत्रता प्रिय , प्रतापी राजा बताया है।
बप्पा रावल धर्मनिष्ठ था। तथा इसका स्थान मेवाड़ के इतिहास में अग्रणी स्वीकार किया है इतिहासकार डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा ने,
बप्पा रावल को कर्नल जेम्स टोड ने कई वंशों का संस्थापक व शासक के रूप में मान्यता प्रदान कर मनुष्यों में पूजनीय और अपनी कीर्ति से चिरंजीवी माना है।
ब्रिटिश विद्वान चार्ल्स मार्टेल ने लिखा है कि बप्पा रावल के शौर्य के सामने अरब आक्रमण(मुस्लिम सेना) का ज्वारभाटा टकराकर चूर चूर हो गया।
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इसमें संदेह नही कि बप्पा रावल हिंदुस्तान का बड़ा पराक्रमी, प्रतापी व तेजस्वी महाराजधिराज हुआ, उसने अपने पूर्वजों के प्रताप, बडडपन को पुनः स्थापित किया, कविराजा श्यामलदास ने लिखा है बप्पा रावल के बारे में ।
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