AURANGZEB

AURANGZEB औरंगजेब(1658-1707)

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औरंगजेब(1658-1707)

औरंगजेब का जन्म दोहद (उज्जैन) में हुआ। यह स्थान गुजरात और मालवा सूबों की सीमाओं पर स्थित था। यह मुमताज की 14 संतानों में से छठा पुत्र था।

औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर, 1618 ई.
औरंगजेब के पिता का नामशाहजहाँ
औरंगजेब की माता का नाममुमताज महल
औरंगजेब का वास्तविक नाममुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब

उत्तराधिकार का युद्ध

शाहजहाँ के शासनकाल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना थी। थे।

यह शाहजहाँ के चारों पुत्रों दारा शिकोह, शुजा, औरंगजेब और मुराद के मध्य यह युद्ध हुआ ये चारों मुमताज महल के पुत्र थे।

यह युद्ध सम्राट की जीवितावस्था में ही लड़ा गया।

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शुजा

शुजा शाहजहाँ का पुत्र, बंगाल का सूबेदार था।

औरंगजेब

औरंगजेब उत्तराधिकार के युद्ध के दौरान औरंगजेब दक्षिण का – सूबेदार था। यह शाहजहाँ के चारों पुत्रों में सबसे योग्य था।

मुराद

मुराद शाहजहाँ का पुत्र, गुजरात का सूबेदार

बहादुरपुर का युद्ध

बहादुरपुर का युद्ध (14 फरवरी, 1658 ई.) उत्तराधिकार के युद्ध के तहत् यह प्रथम युद्ध शुजा और शाही सेनाओं के मध्य बनारस के निकट बहादुरपुर में लड़ा गया, इसमें शाह शुजा पराजित हुआ।

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सामूगढ़ का युद्ध

सामूगढ़ का युद्ध (29 मई, 1658 ई.) : उत्तराधिकार का यह तृतीय युद्ध लड़ा गया। इसमें औरंगजेब व मुराद की संयुक्त सेनाओं ने दारा व शाहजहाँ की सेनाओं को निर्णायक रूप से पराजित किया।

छत्रसाल हाड़ा

दारा के सेनापति छत्रसाल हाड़ा ने असीम पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए शत्रु को बिखेर दिया किन्तु दूसरे सेनापति खलीलुल्लाखाँ ने दारा के साथ विश्वासघात किया, जिससे दारा शिकोह की पराजय हुई |

दौराई का युद्ध

दौराई का युद्ध (अप्रैल, 1659 ई.): अजमेर के निकट हुये इस युद्ध में औरंगजेब ने दारा को अंतिम रूप से पराजित किया।

अफगान मलिक जीवन

विश्वासघाती अफगान मलिक जीवन ने जिसके पास दारा ने शरण ली थी, दारा को बंदी बनाकर मुगलों को समर्पित कर दिया, दारा शिकोह को प्राणदंड दिया गया।

खजवा का युद्ध (3 जनवरी, 1659 ई.)

औरंगजेब ने शुजा को इलाहाबाद के निकट हुए इस युद्ध में पराजित किया । पराजित होकर शुजा अराकान चला गया और यहाँ उसे 1660 ई. में मग जाति के लोगों ने मार दिया।

उत्तराधिकार का युद्ध 1657 ई. में आरम्भ हुआ और 1667 में समाप्त हुआ। औरंगजेब प्रथम मुगल सम्राट था, जिसका दो बार राज्याभिषेक

हुआ।

पहला राज्याभिषेक सामूगढ़ विजय के उपरांत आगरा पर अधिकार करने के बाद दिल्ली में 21 जुलाई, 1658 ई. को हुआ। दूसरा राज्याभिषेक भी 5 जून, 1659 को दिल्ली में ही हुआ।

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शाहजहाँ

औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को आठ वर्ष तक आगरा के किले के शाहबुर्ज में कैदी बनाकर रखा।

 जहाँआरा

सिंहासन पर बैठते ही औरंगजेब ने लगभग 80 करों को समाप्त कर या।

शाहजहाँ की बड़ी पुत्री, इसने मृत्यु तक अपने पिता की कारावास में सेवा की।

औरंगजेब ने गाजी की उपाधि धारण की

अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी की उपाधि धारण की।

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औरंगजेब के चार पुत्र थे

मुहम्मद मुअज्जम, शाह आलम, कामबख्श एवं अकबर

मुर्शिदकुलीखाँ

औरंगजेब का राजस्व मंत्री।

दकनी अमीर

मुगल शासकों में औरंगजेब की सेना में सर्वाधिक संख्या में दकनी अमीर थे।

राहदारी कर

राहदारी कर औरंगजेब ने इस कर को समाप्त किया। यह कर नदियों के घाटों पर या सूबों की सरहदों पर 1/10 की दर से लिया जाता था।

पानदारी कर

पानदारी कर औरंगजेब ने इस नगद कर को समाप्त किया।

न्याय प्रशासन

औरंगजेब न्याय प्रशासन में सर्वाधिक सुधार करने वाला शासक था।

औरंगजेब के चरित्र की मुख्य कमजोरी

औरंगजेब का अविश्वासी होना।

मुगल प्रांतों की संख्या

मुगल शासकों में सर्वाधिक प्रांतों की संख्या (21, सर्वाधिक विस्तृत साम्राज्य) औरंगजेब के समय थी।

संगीत पर सर्वाधिक फारसी भाषा में पुस्तकें औरंगजेब के शासन में लिखी गई।

औरंगजेब कुशल वीणावादक सम्राट था।

औरंगजेब ने दरबारी संगीत पर प्रतिबन्ध लगाया, संगीत विभाग व इतिहास विभाग को समाप्त किया।

औरंगजेब के शासकाल में मुगल सेना का तोपखाना सर्वाधिक विशाल व शक्तिशाली था।

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औरंगजेब के शासनकाल में हुए विद्रोह

जाट विद्रोह

औरंगजेब के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह मथुरा, आगरा व दिल्ली के निकट बसे हुए जाटों ने किया।

जाटों ने आर्थिक कारणों से विद्रोह किया।

जाटों के विद्रोह का नेतृत्व मुख्यतः जमीदारों ने किया जिनमें गोकुल, राजाराम एव चूड़ामन प्रमुख जमींदार थे

यह विद्रोह 1669 ई. में मथुरा के जाटों द्वारा तिलपत के जमींदार गोकुल के नेतृत्व में शुरू हुआ, अब्दुल नवी नामक मुगल अधिकारी की हत्या कर दी गई।

तिलपत

तिलपत में 1670 ई. में जाटों की पराजय हुई और गोकुल जाट की नृशंसतापूर्वक हत्या कर दी गई।

राजाराम

राजाराम ने सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरे को लूटा व अकबर की कब्र से हड्डियाँ निकाल कर उन्हें जला दिया।

चूड़ामन

राजाराम की मृत्यु के बाद 1688 ई. में उसके भतीजे चूड़ामन ने जाटों का विद्रोह औरंगजेब की मृत्यु तक जारी रखा।

चूड़ामन ने भरतपुर के स्वतंत्र जाट राज्य की स्थापना की।

बदनसिंह

जाट शक्ति को एकत्रित किया।

सतनामी विद्रोह

सतनामी वैरागियों का पंथ है इस पंथ की स्थापना सन् 1657 ई. में नारनौल नामक स्थान पर हुई, इसका निवास स्थान नारनौल एवं मेवात के मध्य था।

सतनामियों ने औरंगजेब के विरुद्ध 1672 ई. में विद्रोह किया, इस विद्रोह का तात्कालिन कारण मुगल सैनिक द्वारा एक सतनामी किसान की हत्या था।

सतनामियों ने नारनौल (पटियाला) पर अधिकार कर लिया किन्तु मुगल सेना से पराजित हो गये।

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अफगान विद्रोह

भागू ने 1667 ई. में इस युसुफजई सरदार ने मुहम्मदशाह नामक व्यक्ति को राजा घोषित कर स्वयं को उसका वजीर घोषित किया, एवं अफगान विद्रोह प्रारम्भ हुआ, फिर 1675 ई. में औरंगजेब ने स्वयं जाकर अफगान विद्रोह का दमन किया।

पूर्वी सीमांत नीति

अहोम नामक जाति ने कामरूप की राजधानी गोहाटी में मुगलों को पराजित किया

औरंगजेब के आदेश पर बंगाल के सूबेदार मीर जुमला ने प्रेमनारायण तथा अहोम जाति को परास्त किया।

शाइस्ता खाँ

औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ कोबंगाल का सूबेदार नियुक्त किया।

शाइस्ता खाँ ने आराकान नरेश को परास्त कर चटगाँव पर अधिकार कर लिया और उसका नाम इस्लामाबाद रखा।

चक्रध्वज

अहोम शासक, इन्होंने मुगलों को पराजित किया, लेकिन अहोम जाति के गृहयुद्ध के कारण शाइस्ता खाँ ने अहोम शासक को परास्त कर मुगल प्रभुता स्वीकार करने के लिए विवश किया।

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